Jun 20, 2017

बदलते हमदम



( एक गुमराह पति के व्यवहार पर एक पत्नी की मनोदशा का चित्रण, एक कवि के शब्दों में )

इन निगाहों से तुम्हें बदलते देखा है
बारिशों में भी तुम्हें पिघलते देखा है।

माना कि हममें भी कुछ कमियां है
बीच बाजारों में तुम्हें बिकते देखा है।

तुम कहते कि किसी को मारना नही
पर हमने तुम्हें बंदूके खरीदते देखा है।

महफिलों में अक्सर खामोश रहते हो
तन्हाइयों में खूब गाते देखा है।

क्यूं परिंदों को पानी पिलाते हो
कितनों के गुलशन उजाड़ते देखा है।

उलझा दी है जिंदगी दौड़-भाग में
कई दफा तुम्हें नींद में चलते देखा है।

कहते हो कि तुम शराबी नही
दबे पांव महख़ानों में जाते देखा है।

लौट कर कभी तो आओ घर पे
मैंने तो तुम्हें सिर्फ निकलते देखा है।

बर्दाश्त नही यूँ  चुपचाप रोना तुम्हारा
क्या हुआ, तुम्हें तो हरदम हंसते देखा है।

                                                                            --- अशोक मादरेचा

Jun 17, 2017

Stressed ? Read it..



Commenting on others is easy and for many it's entertaining, but analyzing oneself is far difficult and pointing out this fact in a given situation is again more difficult. Unless we understand ourselves, happiness would be a distance dream always. We are governed by our brain and heart and I feel, both are programmed by our past actions and reactions. While on one side we tend to listen logic, on other side we are more comfortable with emotions. This is irony and simultaneously blessings in disguise too, I would say. Now there is a big question, why stress makes inroads in our life ?

Broadly, we can say there are two major stresses :
1. Temporary or Situational
2. Prolonged or self created

Let's talk about Temporary or situational stress. When some situation develops and it disturbs anyone's comfort, it's a stress for him. There are lots of examples like unemployment, ruined relationship, polluted environment, increased expenses, failed in an examination and so on.

What are prolonged or self adopted stresses? In clear and very plain words I would say, when we develop habits of self fighting, it leads to prolonged or self adopted stresses. In such cases, people are living in their own perceptions and among these perceptions they make hyper permutations and combinations. Many times you might have seen people, though listening, but not able to answer as their whole inner world is busy waging a war with themselves. These types of people often apprehend situations which are not real, most of the time. That's why I name it a self-created stress.

So how we brace up to overcome stress? We have to be realistic and pragmatic while dealing with both these stresses. On certain occasions, situation seems logical and sometime it is an outcome of

May 29, 2017

संदेश (Message)


बुने हुए सपनों पे कभी मत इतराना
बीच रास्तों में कभी मत घबराना।

इनको सच होने में वक़्त लगता है
आरम्भ में सब कुछ सख्त लगता है।

धीरज का हाथ थामे आगे बढ़ते रहना
परिश्रम और प्रयास, बस करते रहना।

बहुत थकान आएगी निराश मत होना
कभी हार भी जाओ तो हताश मत होना।

कांटो को देख कभी पीछे मत हट जाना
जहां हो मुश्किलें पहले वहीं डट जाना।

हर चुनौती का साहस से उत्तर देना
आंखों में आंखे डाल प्रत्योत्तर देना।

तपता सूरज, कहीं बादल, कहीं बरसाते
इसमें नया नही कुछ कहीं दिन, कही राते।

अपनी रप्तार और दिशा का ध्यान रखना
जोश में होश ना खोना इसका भान रखना।

याद रहे रणनीति में फेरबदल बहुत कुछ करना
पर ध्यान रहे भरोसा कब कितना किस पर करना।

                                                  मेरा पुनःआग्रह है तुम्हें, नीति और नियत से चलना
                                                   फिर जिंदगी में दूर नही होगा मंजिल से मिलना।।
                                                      
                                                                                           ----- अशोक मादरेचा

May 18, 2017

जीवन की विडम्बनाएं (Irony of life)


अपने लंबे व्यावसायिक जीवन में मुझे कई व्यक्तियों से मिलने अथवा साथ काम करने का अनुभव मिला। जीवन अपने आप में पूर्ण नहीं होता। किसी को कुछ उपलब्ध नही तो किसी को जरूरत से ज्यादा वस्तुएं या सुविधाएं उपलब्ध है। आइये कुछ छोटी छोटी कहानियों के माध्यम से हम जीवन की सच्चाई को समझे:

1. एक होनहार उद्योगपति अपने बढ़ते व्यापार के बीच भी संतुष्ट नही था। कई बार उससे मिलने का मौका आया पर हर बार उसके चहेरे पर असन्तुष्टि स्पष्ट नजर आती थी। एक बार मुझे उसके साथ एक समारोह में जाने का संयोग बन गया और वहाँ जाकर उसके व्यवहार में आये बदलाव को देखकर मुझे समझ मे आया कि वो इतना असंतुष्ट क्यो था। मैंने देखा कि उस समारोह में उस उद्योगपति से भी कई बड़ी हस्तियां मौजूद थी और वो अपने से बड़े उद्योगपतियों के आगे पीछे घूम रहा था। मेरे मन मे विचार आया कि ये व्यक्ति कितना निर्धन है जो अपने पास सब कुछ होते हुए भी इस तरह से किसी अनजान भूख से सतत व्याकुल है। शायद उसे महत्वपूर्ण बनने की चाह थी या किसी की अनुकंपा पाने की अभिलाषा। सचमुच संसार मे हम अप्राप्त वस्तुओ के प्रति ज्यादा आकर्षित होते है और प्राप्त वस्तुओं के महत्व को समझ ही नही पाते।

2. एक युवा शादी करता है और कुछ ही दिनों के बाद उसका अपनी पत्नी से मोहभंग हो जाता है। कारण जानकर आश्चर्य होगा कि उसकी पत्नी सीधी, संस्कारी और पारिवारिक मूल्यों को समझने वाली थी। उस युवा को आधुनिक, पार्टी इत्यादि में रुचि रखनेवाली पत्नी चाहिए थी। नतीजा- तलाक हो गया। उसने फिर शादी की ओर आधुनिक पत्नी घर लाया। अब ये पत्नी घर का काम बिल्कुल नही करती और बड़ो का तिरस्कार करती । इस कहानी का भी यही सार है कि जो उपलब्ध है उसकी अवहेलना हो रही और जो दूर है उसकी अपेक्षा में वक़्त जाया हो रहा। इंसान रोज सिर्फ सपनों की दुनियां को हकीकत मान रहा। अपने कर्तव्य के बजाय हम अधिकारों की जानकारी ज्यादा रखते है और जीवन को अनायास ही नर्क में ढकेल देते है।

3. एक उच्च शिक्षा प्राप्त लड़की की शादी अच्छे खानदान में हो गयी। घर मे सब सुविधाएं थी, परन्तु लड़की का मानना था कि बाहर कोई कंपनी में जॉब किया जाय तो अच्छा रहेगा, जैसे पैसा हाथ मे आता रहेगा, घर का काम नही करना पड़ेगा आदि आदि। समय के साथ लड़की का घर से संपर्क कम होता गया,नतीजा ये हुआ कि संतान देरी से हुई, स्वास्थ्य पर स्थायी रूप से असर हो गया। बैंक में थोड़ा पैसा तो बढ़ गया पर घर के बजाय वो अनजाने में अपने जॉब ओर बोस की ग़ुलाम हो गयी। उसके घर पर बड़ा व्यापार था, उसको संभालने की पूरी आजादी भी थी पर होनी को कौन टाल सकता है, व्यक्ति दूर की अप्राप्त वस्तुओं पर आकर्षित होता है और घर के बजाय अन्य में सुख खोजने का प्रयत्न करता रहता है और इसी दौरान जीवन का स्वर्णिम समय बीत जाता है।




उपरोक्त तीन कहानियां सिर्फ संदर्भ के लिए यहाँ लिखी गयी है लेकिन वास्तविक जीवन मे हर व्यक्ति या परिवार में इस तरह की अनगिनत कहानियां रोज आकर लेती है। वास्तविकता ये है कि यदि हम दया, मैत्री, समता जैसे सद्गुणों को जीवन की दौड़ में बहुत पीछे छोड़ आये है। वर्तमान को भूल कर या तो बीते समय का रोना रोते है या भविष्य की चिंता में खोये रहते है।हम अपने आपको बहुत चतुर समझते है और दूसरों को अंधेरे में रख कर जीने को कला की संज्ञा देते है और ये मान लेते है कि इसका प्रतिफल भी हमारे नियंत्रण में है। मानवता के मूल्यों को जो अपनाता है उसके स्वाद का मजा तो वो ही ले सकता है। आज भी नियति अपना काम करती है। चलो कुछ पल ही सही, पर अपने अस्तित्व की सार्थकता के बारे में सोचे, क्या पता उनमे से ही कोई पल हमारी आंखे खोल दे और हम वास्तविक जीवन पथ को पहचान ले।
----- अशोक मादरेचा

Mar 31, 2017

जीवन की दशाएँ ( Direction in Life )




सामान्यतया हम सभी जीवन को तीन दशाओ में व्यतीत करते है और पूरे जीवन में इसके बारे में बहुत कम सोचते है। आइये इन तीनों दशाओं के बारे में कुछ जानने की कोशिश करे।

धन संग्रह दशा :

प्रथम जीवन का प्रमुख भाग रोजगार, धन दौलत कमाने में निकलता है। स्वाभाविक है कि कोई भी धन के द्वारा अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहेगा। धन से संसार की अधिकांश आवश्यकताएं पूरी हो सकती है ऐसा विश्वास भी हर जगह पाया जाता है। धन महत्वपूर्ण है परंतु कितना ? यदि धन हमें शांति के साथ ख़ुशी दे रहा है तो ठीक है परंतु धन के कारण ही घर परिवार की सारी खुशियों पर ग्रहण लग जाये तो कोई भी विवेकशील मनुष्य इस पर विचार करेगा और जरुरत हो वैसे जीवन में परिवर्तन भी लायेगा। धन प्राप्ति के संसाधन और तरीके कैसे हो इस पर चिंतन की जरुरत है।

प्रसिद्धि और मान्यता की दशा :

ज्यो ही धन की उपलब्धि के नजदीक पहुचते है हम सभी जीवन में एकाएक प्रसिद्धि नाम के लड्डू को खाने के लिए बेचैन हो जाते है। पता नहीं क्यों हमें ऐसा लगने लगता है कि जितना लोग हमें मान सम्मान देंगे उतना ही जीवन धन्य होता जायेगा। इस प्रसिद्धि को पाने के लिए हम कई तरह की योजनाएं बनाने लग जाते है और कई बार तो अनचाहे लोगों को भी मित्र बना लेते है। मूल रूप से सोचने वाली बात ये हे की क्या किसी व्यक्ति, समूह, मिडिया, या संग़ठन के मानने से ही आप सम्मानित होते है या आपकी अंतरात्मा के आईने में सत्य के रुबरु होकर अच्छा महसूस करते है। क्यों हम स्वयं को इतना लघु मान लेते है ? प्रसिद्धि की इस झूठी दौड़ में पैसा और मन की शांति, दोनों को दांव पर लगा देना कहाँ की समझदारी है? यह महादशा धार्मिक और अधार्मिक दोनों पर समान रूप से हावी होती है।आजकल तो अखबारों की सुर्खियों में आने के लिए काफी बड़ा विनियोग हो रहा है। दुःख तो तब और बढ़ जाता है जब आपने पैसे भी खर्च कर दिये और मनचाहा परिणाम नहीं मिला। जीवन की इस दशा को में अपने शब्दों में शनि की महादशा भी कह दू तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

दिग्भ्रांति की दशा :

यह दशा उपरोक्त दोनों दशाओं के साथ साथ चलती है और मौका देखकर इंसान को सतत परेशान करती रहती है। इस दशा में कोई भी मूल उद्देश्यों  यानि धन प्राप्ति एवं प्रसिद्धि हेतु इतना भृमित और व्यस्त हो जाता की उसे संबंधों यानि मित्रता, परिवार, समाज आदि के बारे में या तो सोचने का समय ही नहीं मिलता या वो उन सभी को खुद के हिसाब से परिभाषित करने लग जाता है।

एक कथित रूप से धनी और प्रसिद्ध व्यक्ति के दिग्भ्रमित होने के लक्षण इस तरह से पाये जाते है :

1. हंसी में कमी या बनावटी हंसी
2 हर समय महत्वपूर्ण दिखने की बीमारी
3 असहज पहनावा
4 स्वयं को बड़ा ज्ञानी मानना
5 समारोह इत्यादि में चमचो से गिरा होना
6 सही दोस्तों की भारी कमी
7 व्यस्तता दिखाने में महारथ
8 रिश्तदारों एवं मित्रों पर उपेक्षा भाव
9 प्रभुत्व स्थापित करने की प्रबल इच्छा
10 मानसिक तनाव
11 इतना सब कुछ होकर भी शरीफ होने का नाटक।

ये कुछ लक्षण बीमारी के आरम्भ के बताये गए है । गंभीर अवस्थाओं में इन लक्षणों की संख्या बढ़ जाती है। कुछ लक्षण एक आम आदमी तुरंत ताड़ लेता है तो कुछ लक्षणों को समझने के लिए अनुभव की जरुरत होती है।

संसार में सभी अपना कृतत्व करते है और अपने हिसाब से जिंदगी जीने का उपक्रम करते है। प्रश्न पैदा होता है कि क्यों हम जीवन को इतना उलझा देते है? क्यों हम स्वयं अपने आप पर भरोसा नहीं करते ? आज भी सच्चे और अच्छे लोगो की बहुत भारी मांग है पर हम सभी छोटे रास्तो की तलाश करते रहते है । शायद यही वजह है कि हम अंदर से खोखले होते रहते है और फिर औरों की मान्यताओं और सम्मान के लिए किसी भी हद तक गिर जाते है। जीवन और आत्मा के संबंध को हमें हमेशा याद रखना चाहिए ताकि हम अपने विवेक से ससमय समझ सके की कौनसी दशा हम पर हावी हो रही है और क्या परिवर्तन लाना चाहिए।

अशोक मादरेचा

Mar 23, 2017

नियति (Destiny)



पल पल में बहुत कुछ घटित होता
कुछ मन का, कुछ अनचाहे होता
कुछ बदल देता, कुछ बदल जाता
कभी अच्छा, कभी बुरा लग जाता ।

स्वीकृति मन से करो या कहो मज़बूरी
यहाँ हर इच्छा किसकी होती पूरी
मालुम है काम सबके है बड़े जरुरी
पूरी करते जाओ, इच्छाएं रहती अधूरी ।

घूमते नक्षत्र और सितारें भी निरंतर
घूमते परिंदे और इंसान भी इधर उधर
आता नहीं कही पर कुछ भी अंतर
थका जाता मनुज, बहुत कुछ कर कर ।

जान लो कि नियति क्या कहती है
कभी सोचा ? ये जमीं कितना सहती है
रुकना स्वभाव नहीं, नदियाँ तो बहती है
कुछ भी खाली होता, वहाँ हवाएँ तो रहती है ।

काल को कौन परिभाषित कर पाया
कुछ लिखा वो भी लगता है माया
समय से बंधा हुआ यौवन और काया
ना लोग रहे ना उनका कोई साया ।

सब्र करो आज भी आँखों में आंसू आते है
पीड़ा भी होती, वो उम्मीद भी जगाते है
कुछ लोग है जो खूब रंग जमाते है
नियति भी बदल दे ऐसा खेल रचाते है ।

Feb 15, 2017

Mistakes Every One Should Know And Avoid



Life, you can say, is time spent on this earth but the time itself is so precious that one should always know about some common mistakes and avoid these as early as possible to control the unrecoverable damage and repent later. Understanding these mistakes will certainly compel you to think about self-transformation. let us see what are these mistakes.

Not act when sun is shining : When we are younger we must stay vigilant about our health and career both. Parents must think in advance how their children would make them fit and suitable to take on the challenges of life. One can not afford to ignore health and career both.

Run after things which is not worth: 95 % of average people are after so many things or such persons in their life which are not worth to them, at all. They even don't know why the seek them. I have seen such people, if you ask them , they bluntly say what is the need to know, this is the height.

Run when time is out: very very big and common mistake. Anything you start or put your efforts just assure yourself and ask is it right time to do? if confused consult your mentors or experienced people in the field. Having billions of dollars at the age of 85 and at 35 makes a lot of difference. At the age of 85, I feel the money is notional, it may not bring you the joy what you feel at the age of 35. We have to draw a clear line and follow it with utmost clarity.

Always trying to keep others happy: I recommend every one of you to honestly assess yourself if you are not a monk or sannyasi. You will wonder what kind of life we are living. Most probably you would laugh at yourself and that too loudly. I hope you are getting me. Everything you do is for happiness for others most of the time. You work for siblings, society, organization, and so on. In this whole process you simply forget yourself and the true happiness becomes a distinct reality.
  
Never think about priority: Confusion about what to do at what stage creates lots of uncertainty which leads to indecisiveness. We should know about our realistic priorities and not the one which is just a created priority. Imagine a person putting his entire energy after supporting an election campaign while his parents are not well and he is not attending them. On several occasion we feel sad about our investment of time on wrong priorities. A person is deeply engaged in social matters while his children were lacking guidance about their future. These are some instances.

Ignorant and casual approach in abundance: Everything we do, we have to be focused to achieve. Without concluding tasks we can not move ahead. Our approach has to be definite. People don't take seriously to people having casual approach.

Influenced by matters or persons which are totally irrelevant : If we get influenced quite often by different groups, persons, situations and change our goals frequently, success too gets postponed. Life is full of different events, occasions, situations, groups, people, environments and atmospheres. All the time we cannot allow these to pull back. We should be vigilant about our deeds and performance to achieve what we really aspire for.

The mistakes discussed above makes major impact on most of our life and sometimes we don't even notice this. To achieve proper balance in life, we must avoid these.        

 

प्रयास (Efforts)

जब सब कुछ रुका हुआ हो तुम पहल करना निसंकोच, प्रयास करके खुद को सफल करना। ये मोड़ जिंदगी में तुम्हें स्थापित करेंगे और, संभव है कि तुम देव तु...