Feb 11, 2018

दोस्त को पुकार (calling the friend)




सपनों का पीछा करता मनुज
गंतव्य को भूल बैठा

जब मंजिलें ना मिली
तो जहां रुका उसे ही मंजिल मान बैठा

जब कुछ खास हासिल ना हुआ तो
कुछ अखबारों की सुर्खियों में आकर
जीवन को धन्य मान बैठा...।

खैर जो हुआ सो हुआ
पर इसको आदत सी बना ली

अब तो नित्य ही कृत्रिम जिंदगी जी रहा
घूंट जहर के चुपचाप पी रहा

वो बतियाने को दोस्त भी ना साथ रहे
कुछ कहे तो भला किसको कहे....।

इतना आगे आ गए
कितने पीछे छूट गए

नदियों में पानी बहुत बहा
किनारों ने कितना सहा

चले थे कहां , मुकाम कुछ और मिले
भूलकर सब शिकवे और गिले
आ मेरे दोस्त हम फिर मिले
आ मेरे दोस्त हम फिर मिले....।

Jan 23, 2018

मौन (Silence)



मेरे प्रश्नों से ज्यादा उलझे हुए थे उत्तर
सोचता हूं बोलू या चुप्पी साध लू। 

सत्य इतना जटिल भी होता है
पहले नही था अहसास कभी। 


हतप्रभ सी स्थिति में
कुछ भी सूझता नहीं था। 

बरबस सब होता गया
सध सी गई मानो भीड़ में निरवता
और किसी दुर्जन में भी समता। 

समय को मेरे शब्दों की ज़रूरत थी
और मज़बूरी को मौन की। 

किसे अपना लू किसे नहीं
असमंजस हावी था विवेक पर
ये सब ऐसा था जैसे प्रकाश में
होता अंधेरे का अनुभव। 

ठिठकती न्याय व्यवस्था
सिमटते विकल्प और समाधान
किंकर्तव्यविमूढ़ राजनीति आज
हर कोई जवाब की अपेक्षा में। 

मै खड़ा कर्तव्य पथ के दौराहों पर
आहटें थी कुछ पदचापों की
सत्य मौन साधे एकांत में
और असत्य अकड़ रहा था।

----- अशोक मादरेचा

Dec 21, 2017

समझ (Understanding)





मुझे बहुत समझाया गया 

कुछ उल्लेखित राहों पे चलने को
लादे हुए माहौल में पलने को।

प्रश्न करने की मनाही हरदम
बहुत निगरानी में थे मेरे कदम।

आत्मा पर पहरे भला कब तक चलते
विचार तो बच्चों की तरह मचलते।

में भी लोगों को पहचानने लगा
उनके भावों को जानने लगा।

किसीने मुझे भक्त बनाया
किसीने अशक्त बनाया।

जब सत्य से मुलाकात हुई
जीवन मे नई शुरूआत हुई।

अब समय को जानकर
अपनी मर्यादा को मानकर।

मै मौलिकता के मार्ग पे चल पड़ा
प्रतिक्रियाओं से बाहर निकल पड़ा।

अब चंचल मन भी मान जाता है
अनेकांत से निकट का नाता है ।

अंतरिक्ष का अंतर में आभास करता हूं
अनसुलझे प्रश्नों के उत्तरों की तलाश करता हूँ।

--- अशोक मादरेचा  (Ashok Madrecha)

Nov 23, 2017

कविता (Hindi Poem)



मुझे चुनोतियाँ तो हर रोज मिलती है
मेरी कविता, सिर्फ सत्य जो कहती है।

ये कभी श्रंगार तो कभी वीर रस कहती है
निर्भय हो सत्ता के गलियारों से भी गुजरती है।

इस पर हर तूफान भी गुजर जाता
आकाश भी सीमित नही कर पाता।

रोकने की हर कोशिश इसे बृहत्तर कर देती
सूखते शब्दों के झरनों को फिर भर देती।

ये कविताएँ भूगोल नही मानती
स्वछंद ये, खुद के अस्तित्व को नही जानती।

बरबस इनका बनते जाना
शब्दों का चितवन में आना जाना।

ये तो बस शुरू होती है
नही कभी ये अंतिम होती है।

कितनों ने समझा इसे और आनंद लिया
बेशक कुछ बिरलों ने जी भर के इसे जिया।

बस इसे एक प्रेम ही नियंत्रित करता है
अंतर्मुखी बनाकर अभिमंत्रित करता है।

जब प्रेम से अध्यात्म की ओर अग्रसर होती है
कालजयी बन अक्सर वो कविता अमर होती है। 

Oct 22, 2017

Near to Truth सत्य के करीब



A Hindi Poem on a situation of an experienced person guiding his kin about truth of life ...




                                                     मेरी लघुता को मजबूरी मत समझो
                                                   आप जीतते रहो, उसकी व्यवस्था है ये।

                                                  हम तो उस दिन जीतेंगे जब लोग कहेंगे
                                                     आप जीत गए हो अपने प्रयत्नों से।

                                                      रास्तों के कंकरों से दोस्ती है मेरी
                                                      ताकि वो कभी चुभे नही आपको।

                                                      गति तेज है, जरा सम्भलकर चलना
                                                      अभी तो दूर तक जाना है आपको।

                                                      मेरी कलम पर एतराज मत करो
                                                    इतिहास लिखना तो बाकी है अभी।

                                                   शंका के बादलों में छुप के मत रहो
                                                    जो कहना है, दिल खोल कर कहो।

                                              फैसला तो होठों तक आ चुका हाकिम के
                                           मजबूर वो आज तक, गवाहों के इंतजार में है।

                                              हम चलते है जमीन पे आपका ख्याल कर
                                               वरना उड़ना तो हमें भी खूब आता है।

                                               विश्वास की बुनियाद पर घर बनते है
                                             अन्यथा महलों को भी कौन पूछता है।

                                        मेरे आंगन के फूलों में कोई फूल ऐसा महके
                                       लोग बुलाए उस फूल को, विश्व धरोहर कहके।

                                             विचार लो और कर्तत्व को महत्व दो
                                            अविचल बनो ओर सत्य को सत्व दो।

                                      ऊंच नीच के फेर में आज भी यथार्थ का स्थान है
                               झूठ कितना भी पाल लो, सत्य ही महान है, सत्य ही महान है।

Oct 17, 2017

विश्वास या भय ( Faith or Fear )


जीवन में कई बार ऐसी स्थितियाँ आ जाती है कि हम किस तरह जी रहे है और हमे किस तरह जीना था उसमें अंतर नही कर पाते। ज्यादातर लोग तो इस फर्क को समझ ही नही पाते और जो लोग जब तक समझ पाते, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
इसी संदर्भ में आइए, हम जीवन में भय और विश्वास के बारे में कुछ जानने की कोशिश करते है। मेरे एक मित्र है जो नियमित रूप से किसी धार्मिक स्थान पर जाते है एवं उनकी मान्यताओं के अनुरूप पूजा-पाठ इत्यादि करते है
मेरे मन मे भी उनके प्रति बड़ा आदरभाव है। उनका हमेशा ऐसा मानना है कि धार्मिक क्रियाओं से व्यक्ति में अच्छाइयों के संस्कार आते है और काफी हद तक यह ठीक भी था। एक दिन किसी कारणवश वो अपनी इस नियमित क्रिया को कर नही पाये ओर योगवश उसी दिन उनके घर मे कोई बीमार हो गया। अब बीमारी कोई पूछकर तो आती नही पर मेरे मित्र के मन मे यह बात घर कर गई कि धार्मिक क्रिया नही की तो ऐसा हो गया। 
यहीं पर हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है। हम श्रद्धा और भय में अंतर नही करते और अपनी कहानी को ओर दुखद बनाने के सारे प्रयास करने लग जाते है। अब बताइये उपरोक्त अवस्था मे श्रद्धा कम थी या भय ज्यादा था। सचमुच सोचनीय विषय है। न तो हम श्रध्दा ओर न ही भय के अस्तित्व को पूरी तरह नकार सकते है। आपने कई बार ऐसा सुना होगा कि ऐसा नही करोगे तो ऐसा हो जाएगा। ऐसा करोगे तो बहुत अच्छा रहेगा। प्रश्न उठता है कि यदि मनुष्य या जीव कर्मो के अनुसार फल पाते है तो समाज में इतना भय कौन फैलाता है। सीधी सी बात है कि ये सब वो ही लोग करते है जिनको इन सबसे सीधा फायदा पहुँचता है। ये फायदा सिर्फ पैसों का ही नही वर्चस्व, नाम, और स्वामित्व के रूप मे भीे पहुंचता है।

हर एक व्यक्ति अपनी शुद्ध आत्मा के साथ इस संसार मे जन्म लेता है और अपने प्रारब्ध के अनुरूप जीवन जीता है। हँसने वाली बात तो यह है कि जब बहुत से लोग किसी बात को सत्य मानने लग जाते है तो उस कथित सामूहिक सत्य को सरल स्वभाव वाले व्यक्ति शंका तो नही करते बल्कि उसे और फैलाने लग पड़ते है और फिर शुरू होता है उनको फंसानेका खेल। विश्वास करना चाहिए पर यह अंधा विश्वास नहीं हो इसका सदैव ख्याल रखना चाहिए।

हम कोई कार्य विश्वास से प्रेरित होकर रह है अथवा सिर्फ किसी ज्ञात या अज्ञात भय वश होकर कर रहे है इसका ज्ञान जरूरी है वरना आपको भटकाने के लिए पूरा जमाना तैयार खड़ा मिलेगा। अपना अनुभव और उससे उपजा विश्वास (trust), श्रद्धा ( faith) इन दोनों के फर्क को भी अच्छे से समझना चाहिए। इसके बाद डर (fear) और मान्यताओं (perceptions) को पहचाने। इसमें भी व्यक्तिगत और सामूहिक मान्यताओं को अलग अलग करके देखे तो आप समझ पाएंगे कि यह उल्लू बनाने का उद्योग कितना फल फूल रहा है। यहां मेरा यह आशय कभी नही है कि आप धर्म के विमुख बने, मेरा तो बस इतना मानना है कि कही सामुहिक मान्यताओं के चलते कहीं हम वास्तविक स्वआत्मा के विरूद्ध तो बर्ताव नही कर रहे, इसका भान सतत रहना चाहिए। हमारी धार्मिक साधना पद्धति भिन्न हो सकती है परंतु मन और ह्रदय दोनों जागृत रहे ऐसी अपेक्षा है।

Oct 15, 2017

Hindi Poem on Journey पथिक



जिंदगी का अर्थ खोजने
मै राहों का पथिक बनकर चल पड़ा
उलझन है अब तक क्यों रहा खड़ा।

उजागर हो रहे नित्य नए अनुभव
कहीं नदियाँ, कहीं झरनों का कलरव।

वक़्त भी इम्तहां ले रहा
नित नई चुनोतियाँ दे रहा।

कई नए चेहरे सामने आते
कुछ उदास, कुछ मुस्काते।

हर मोड़ का मौसम अलग हो जाता
कुछ भाता, कुछ नही सुहाता।

सालता कभी अकेलापन
कभी स्वजनों का अपनापन।

कभी शांत, कभी मुखर
कभी इधर तो कभी उधर।

कुछ भी घटित होता, हर पल अनूठा
मुखोटों की दुनिया मे कुछ सच्चा कुछ झूठा।

हे चुनोतियों ! में चुनोती देता हूँ
इन पंक्तियों के शब्दों से कहता हूं।

प्रेरित हूँ परिंदों की उड़ान से
नही रुकूँगा, मैं थकान से।

मंजिलें दूर सही, यात्रा तो जारी है
रोको मत मुझे, दूर तक चलने की तैयारी है।

Efforts कोशिश

बेशकीमती वक्त को मत जाया कर हासिल होगी मंजिल बस तू कोशिश तो कर ...। निकल बाहर हर भ्रम से रोज घूमता इधर उधर थोड़ा संभल और चलने की बस तू कोशिश...