Dec 24, 2013

सत्य के समीप

सत्य के समीप

कही मौन भाषा हे कही पे वक्तत्व .
ख़ुशी खोजने का उप्क्रुम सभी करते निरंतर
ता जिन्दगी उल्जन हे सत्य और असत्य का अंतर .
यही उल्जन आदत सी बन गयी कमोबेश सबकी ,
बचपन बिता तबसे ये परेशानी हे सबकी .
भटकती भीड़ के जुंड में अपना अस्तित्व क्या हे
और गर कोई जान भी गया तो भीड़ का हेतु क्या हे ?
कुछ तो मिलेगा ? ये कब तक चलेगा ?
क्या जींदगी यही हे या कुछ सार भी निकलेगा ?
रोज नए बहाने बनाकर हम सहज महसूस करते हे ,
जानकर अनजान हे , नाजुक हरदय को क्यों मायूस करते हे .
खुद से साक्षात्कार करे बिना हम अधूरे हे हरदम
खुशिया दो खुशिया मिलेगी यही हो अब अगला कदम .

Efforts कोशिश

बेशकीमती वक्त को मत जाया कर हासिल होगी मंजिल बस तू कोशिश तो कर ...। निकल बाहर हर भ्रम से रोज घूमता इधर उधर थोड़ा संभल और चलने की बस तू कोशिश...