जिंदगी का अर्थ खोजने
मै राहों का पथिक बनकर चल पड़ा
उलझन है अब तक क्यों रहा खड़ा।
उजागर हो रहे नित्य नए अनुभव
कहीं नदियाँ, कहीं झरनों का कलरव।
वक़्त भी इम्तहां ले रहा
नित नई चुनोतियाँ दे रहा।
कई नए चेहरे सामने आते
कुछ उदास, कुछ मुस्काते।
हर मोड़ का मौसम अलग हो जाता
कुछ भाता, कुछ नही सुहाता।
सालता कभी अकेलापन
कभी स्वजनों का अपनापन।
मै राहों का पथिक बनकर चल पड़ा
उलझन है अब तक क्यों रहा खड़ा।
उजागर हो रहे नित्य नए अनुभव
कहीं नदियाँ, कहीं झरनों का कलरव।
वक़्त भी इम्तहां ले रहा
नित नई चुनोतियाँ दे रहा।
कई नए चेहरे सामने आते
कुछ उदास, कुछ मुस्काते।
हर मोड़ का मौसम अलग हो जाता
कुछ भाता, कुछ नही सुहाता।
सालता कभी अकेलापन
कभी स्वजनों का अपनापन।
कभी शांत, कभी मुखर
कभी इधर तो कभी उधर।
कुछ भी घटित होता, हर पल अनूठा
मुखोटों की दुनिया मे कुछ सच्चा कुछ झूठा।
हे चुनोतियों ! में चुनोती देता हूँ
इन पंक्तियों के शब्दों से कहता हूं।
प्रेरित हूँ परिंदों की उड़ान से
नही रुकूँगा, मैं थकान से।
मंजिलें दूर सही, यात्रा तो जारी है
रोको मत मुझे, दूर तक चलने की तैयारी है।
कभी इधर तो कभी उधर।
कुछ भी घटित होता, हर पल अनूठा
मुखोटों की दुनिया मे कुछ सच्चा कुछ झूठा।
हे चुनोतियों ! में चुनोती देता हूँ
इन पंक्तियों के शब्दों से कहता हूं।
प्रेरित हूँ परिंदों की उड़ान से
नही रुकूँगा, मैं थकान से।
मंजिलें दूर सही, यात्रा तो जारी है
रोको मत मुझे, दूर तक चलने की तैयारी है।
No comments:
Post a Comment