साध लो मौन को, संतुलन स्वयं सधेगा
समय का अवांछित खर्च भी बचेगा।
हरदम कुछ प्रमाणित करने की चाहत
कोई खुश होगा तो कोई होगा आहत।
इस दौर में चरित्र का दोहरापन आम है
मत गिनो, इस सूची में बहुत से नाम है।
कल एक इंसान पे बहुत हंसना आया
कहता था, वो दूसरा इंसान खोज ना पाया।
बहुत सी भ्रांतियां पाले हम जीते है
भरे हुए दिखते पर अंदर तक रीते है।
करुणा और मैत्री सिमट गई किताबों में
महावीर की अहिंसा, आती है ख्वाबों में।
जीवन को फिर से जानने की जरूरत है
कितने बचे लोग जिन्हें सोचने की फुरसत है।
अपने दायित्व से मुंह मोड़ कर क्या हासिल कर लोगे
क्या सचमुच तुम जीत करके भी हार को वर लोगे।
इतना जल्दी मत हारो, विकारों का प्रतिकार करो
प्रांसगिक है आज भी सत्य और अहिंसा, करो तो जयजयकार करो।
--- अशोक मादरेचा at the time of Jain Prayushan 2018