जिन्हें समय दिया जिंदगी भर
वो कहते है उन्हें फुरसत नहीं ।
व्यस्त है या बनाते बहाने
जरूर कुछ, गलतियां तो हुई ।
नए मित्रों के संग, नए नए प्रसंग
परिस्थितियां आज, बदल गई ।
जवानी है, ऊर्जा भी चरम पर
दृष्टि शायद कुछ बदल गई ।
अहसास कराने, कुछ भी कर लो
नावों की पतवारें तो फट गई ।
सब कुछ गतिमान अमर्यादित सा
शर्मो हया भी तो मिट गई ।
कुछ अनहोनी का अंदेशा हर किसी को
मानवता की तो नींव हिल गई ।
बेशुमार दौलत की उपलब्धियां
पर सेहत उनकी लील गई ।
सबके सब सपनों के सौदागर
सच्चाई अंदर ही अंदर घुट गई ।
बतियाना तो दूर, वो रुकते भी नहीं
कैसे बताऊं उनकी गाड़ी तो छूट गई ।
----- Ashok Madrecha