जिंदगी बहुत छोटी छोटी चीजों से प्रभावित होती है और अनजाने में ही हम न जाने कितनी उलझनों को पाल लेते है। तीन बाते हमें बहुत ज्यादा प्रभावित करती है , अहम , जरुरत से ज्यादा लगाव और वहम। ये तीन बातें हर कदम पर हमारे व्यव्हार को निर्देशित करती रहती है और हम इनसे निरंतर दुःख अथवा सुख को अनुभव करते है। यहाँ सुख का प्रतिशत नगण्य रहता है और दुःख इंसान पर हावी हो जाता है।
आपने देखा होगा कि :
एक पिता इसलिए दुखी है क्यों की उसके बच्चे उसे पूछ कर कार्य नहीं करते। सोसायटी में सचिव हर वक़्त तनाव में रहता है, उसे डर है कहीं सदस्य उसके नियमों को अवहेलना न कर बैठे। ट्रस्टी अथवा न्यासी को डर है कहीं ट्रस्ट की समितियों में उसका पद कोई और न ले ले। भागीदार को शंका है कि उसका भागीदार व्यसाय में कोई प्रतियोगी के साथ न मिल जाय। राजनेता को डर है कही उसकी सत्ता छिन न जाये। पत्नी दुखी है क्यों कि उसका पति उसकी हर बात नहीं मानता। पति दुखी है क्यों कि पत्नी बहुत सवाल करती है। और भी कई उदाहरण हम अपने आस पास देख सकते है और इन सभी का सही विश्लेषण करे तो समझ में आएगा कि अहम , वहम या जरुरत से ज्यादा लगाव हमें सचमुच दुखी कर देता है। हम हर वस्तु को अपना मान बैठते है, उस पर अपना स्वामित्व जताने लगते है और इस प्रक्रिया में जब अहम पर चोट लगती है तो मानने को बिलकुल तैयार नहीं होते। सच्चाई तो यह हे कि जब अच्छी बात हो रही होती है परन्तु हमें पूछ कर नहीं की गयी तो हम उसके असफल होने की कामना करने लग जाते है। न केवल कामना बल्कि उसे असफल करने के लिए अपने सारे साधन भी काम पर लगा देते है। ये सब अहम के कारण होता है। लगाव की अधिकता से होता है या फिर कुशंकाओं के कारण होता है। जब हम सरलता से जीना छोड़ देते हे तो अहम वहाँ अपना घर बनाने के लिए तैयार रहता है। जिसे अहम होता है वो शंकालु भी ज्यादा होता है। ऐसे व्यक्ति भले किसी और से लगाव रखे या नहीं रखे परन्तु अपने अहम से सर्वोच्च लगाव रखते है और सिर्फ अपने आप को सही मानना इनके जीवन का आदर्श होता है।