मुझे बहुत समझाया गया
कुछ उल्लेखित राहों पे चलने को
लादे हुए माहौल में पलने को।
लादे हुए माहौल में पलने को।
प्रश्न करने की मनाही हरदम
बहुत निगरानी में थे मेरे कदम।
आत्मा पर पहरे भला कब तक चलते
विचार तो बच्चों की तरह मचलते।
में भी लोगों को पहचानने लगा
उनके भावों को जानने लगा।
किसीने मुझे भक्त बनाया
किसीने अशक्त बनाया।
जब सत्य से मुलाकात हुई
जीवन मे नई शुरूआत हुई।
अब समय को जानकर
अपनी मर्यादा को मानकर।
मै मौलिकता के मार्ग पे चल पड़ा
प्रतिक्रियाओं से बाहर निकल पड़ा।
अब चंचल मन भी मान जाता है
अनेकांत से निकट का नाता है ।
अंतरिक्ष का अंतर में आभास करता हूं
अनसुलझे प्रश्नों के उत्तरों की तलाश करता हूँ।
--- अशोक मादरेचा (Ashok Madrecha)