समर्पण के सेतु से परमात्म तक की यात्रा
आत्मा के हेतु से बंधे हुए हर असहज को
सहज कर देने की ऊर्जा और दिशाओं को
सीमित कर दे ऐसी कृपा की मात्रा।
हर पल के अस्तित्व को नव आयाम देती हुई
स्वयं को पहचानने की लालसा का अनुभव
होना तो शुरुआत है पर यही मंजिलो तक का
सफर करा देती है विश्राम भी देती हुई।
इरादों का बुलंद होना, और सतत परिश्रम का पालन
कुछ दूर नहीं होता फिर, मनुष्य के लिए
क्या करना है, क्यों करना है, कब करना है
इस उलझन से निकले तो, सफलता करेगी गुंजन।
पुरुषार्थ और आडम्बर का फर्क स्पष्ट रहे हरदम
व्यर्थ में जाया ना करे समय और साधनों को
प्रमाद से दूर रहकर, आनंद के भावों में विचरे बस
इतनी सी बातें है, फिर क्यों कष्ट सहे हम।
-- अशोक मादरेचा