मुझे चुनोतियाँ तो हर रोज मिलती है
मेरी कविता, सिर्फ सत्य जो कहती है।
ये कभी श्रंगार तो कभी वीर रस कहती है
निर्भय हो सत्ता के गलियारों से भी गुजरती है।
इस पर हर तूफान भी गुजर जाता
आकाश भी सीमित नही कर पाता।
रोकने की हर कोशिश इसे बृहत्तर कर देती
सूखते शब्दों के झरनों को फिर भर देती।
ये कविताएँ भूगोल नही मानती
स्वछंद ये, खुद के अस्तित्व को नही जानती।
बरबस इनका बनते जाना
शब्दों का चितवन में आना जाना।
ये तो बस शुरू होती है
नही कभी ये अंतिम होती है।
कितनों ने समझा इसे और आनंद लिया
बेशक कुछ बिरलों ने जी भर के इसे जिया।
बस इसे एक प्रेम ही नियंत्रित करता है
अंतर्मुखी बनाकर अभिमंत्रित करता है।
जब प्रेम से अध्यात्म की ओर अग्रसर होती है
कालजयी बन अक्सर वो कविता अमर होती है।
मेरी कविता, सिर्फ सत्य जो कहती है।
ये कभी श्रंगार तो कभी वीर रस कहती है
निर्भय हो सत्ता के गलियारों से भी गुजरती है।
इस पर हर तूफान भी गुजर जाता
आकाश भी सीमित नही कर पाता।
रोकने की हर कोशिश इसे बृहत्तर कर देती
सूखते शब्दों के झरनों को फिर भर देती।
ये कविताएँ भूगोल नही मानती
स्वछंद ये, खुद के अस्तित्व को नही जानती।
बरबस इनका बनते जाना
शब्दों का चितवन में आना जाना।
ये तो बस शुरू होती है
नही कभी ये अंतिम होती है।
कितनों ने समझा इसे और आनंद लिया
बेशक कुछ बिरलों ने जी भर के इसे जिया।
बस इसे एक प्रेम ही नियंत्रित करता है
अंतर्मुखी बनाकर अभिमंत्रित करता है।
जब प्रेम से अध्यात्म की ओर अग्रसर होती है
कालजयी बन अक्सर वो कविता अमर होती है।