उद्वेलित विश्व में फिर शीत युद्ध की आहट
बदलते शक्ति संतुलन, और नई चौधराहट।
मुट्ठी भर लोगों में बट गया संसार
बाकी सब आगे पीछे करते तकरार।
रोज दोस्त बदलते है आजकल
सब कुटिल राजनीति के फल।
महत्वाकांक्षाएं नए आकार में
सिकुड़ती न्याय व्यवस्था प्रतिकार में।
नेतृत्व विश्व में या तो मजबूर है
या फिर सत्य से ही दूर है।
व्यक्ति पालता आशाएं
कानून बदलता परिभाषाएं।
संगठन स्वयं शोषण का जरिया हो गए
झरने शेखी बघारते खुद ही दरिया हो गए।
भूमिकाएं भागती है जिम्मेदारी से
छूटती उम्मीदें अब वफादारी से।
कुछ बारूद बढ़ा कर आंख दिखाते
देशों के समूह द्वेष बढ़ाते।
निरीह मानवता पूरी मौन है
अब आवाज उठाने वाला भी कौन है।
#WorldPoetryDay2021 #UNO
- Ashok Madrecha