4 जून 2018

अनबोले संदेश (Unspoken Message)


बहाने को अश्क शेष नहीं थे
पथराए से दोनों नयन थे
इंतजार के भाव थे
बेशक दिल में कहीं तो घाव थे।

वो नियति के मारे
शून्य को घूरते थे
आकाश भरा अकेलापन
शायद किसी को ढूंढते थे।

जैसे कई तूफान गुजरे उन पर से
बिखरे केसूओं से झांकते थे
गुजरते राहगीर उस तरफ
कुछ अजीब से आंकते थे।

होठों की कंपकपाहट के बीच
शब्द आकर तो लेते थे
मैं करीब गया, पर समझ नहीं पाया
अजनबी  "अशोक " को वो कुछ तो कहते थे।

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