अंतर से उठ रही अविराम तड़पती आवाज
ओ प्रिय तन्हाई पास आओ आज .…।
तमन्नायें दबती रही, निराशाएं घर करती रही।
झूठे दिलासों के बीच, अमर आशाएं मरती रही .…।
घने कोहरों के बीच, जंगलो में टहलता रहा
कृतत्व और पुरुषार्थ, करने को मचलता रहा .…।
अब सन्नाटों में समय से, कुछ प्रश्न करने की अभिलाषा है
उत्तर मिले या ना मिले, बरसो पुरानी जिज्ञासा है .…।
कहूँगा समय को ,सत्य साथ लेकर आना
ना चलेगा कोई बहाना, मुझे तो बस उत्तर पाना .…।
उलझनों से निकलने की ठान ली है
वक़्त की नब्ज जो पहचान ली है .…।
अब अवरोध सभी हट जायेंगे
गम के बादल छट जायेंगे .…।
विसंगतियों को चुनोती देता हूँ
पूर्ण विश्वास से संकल्प लेता हूँ .…।
समता को अपनाकर,अंतरिक्ष से आगे तक इरादा है
आत्मबिश्वास के आगे ये लक्ष्य कौनसा ज्यादा है .…।
अब तूफ़ान मुझे रोक नहीं पाएंगे
राहों में कोई टोक नहीं पाएंगे .…।
रुक गए यो बहुत खलेगा
घबराने से काम नहीं चलेगा .…।
सब दिशाओं को निर्देशित कर दूंगा
मुरझाए दिलों में नयी उर्झा भर दूंगा .…।
पल प्रति पल प्रयत्न करूँगा
मै विजय श्री का वरण करूँगा .…।
मै विजय श्री का वरण करूँगा .…।
…अशोक मादरेचा
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आत्मविश्वास (Self Confidence)
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Oleh
Ashok Madrecha