10 जन॰ 2015

पिता का पुत्र को संदेश




मुखर कर उन्मेष को उत्कर्ष की तरफ
प्रयत्न कर उखाड़ दे हर मायूसी की बर्फ।

ये तूफान ही रास्ता बनाएँगे बस जान लेना
वक़्त रहते रास्तों का मिजाज पहचान लेना।

दूर है मधुमास अभी बहुत बीहड़ में चलना बाकी
उलफत में मत रहना ये शुरुआत की है झांकी।

दो दो हाथ मुश्किलों से होना बहुत आम होगा
इंसानों की दुनियाँ में ये वाकया सुबह शाम होगा।

लक्ष्य पे नजर रखना दिन में भी कदम बहकते है
जरा सम्भलना हर गली मोहल्लों में इंसान रहते है।

आकाश नापना है तो इरादों में जोश होना चाहिए
दूर कितनी है मंजिल इसका भी होश होना चाहिए।

तान लो सुनहरे वितान वक़्त तुम्हे इंद्रधनुषी रंग दे
नया सवेरा हर सुबह तुम्हे चिर आशा की उमंग दे।

----  अशोक मादरेचा

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