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Sep 26, 2016

कटाक्ष


 कटाक्ष

शराफ़त के ज़माने अब कहाँ
यूँ अकेले मत पड़ो यहाँ वहाँ।

समूहों के झुण्ड आस पास है
कोई साधारण, कोई खास है।

हर कोई खींचने की फ़िराक में
मना करो तो आ जाते आँख में।

जंगल छोड़ भेड़िये शहरों में आने लगे
सुन्दर लिबासों में शरीफों को लुभाने लगे।

ख्वाब बेचने का व्यापार चल पड़ा
लालच में हर कोई मचल पड़ा।

समूहों में हर चीज जायज हो जाती
विचारधाराएं ख़ारिज हो जाती।

नये दौर के तर्क नए , सत्य स्वयं भटक गया
इंसान इंसानियत छोड़, समूहों में अटक गया।

ईमान कम बचा , नियति तो बहुत स्पष्ट है
शिकायत किससे करे जब पूरा तन्त्र ही भ्रष्ट है।

...... अशोक मादरेचा 

प्रयास (Efforts)

जब सब कुछ रुका हुआ हो तुम पहल करना निसंकोच, प्रयास करके खुद को सफल करना। ये मोड़ जिंदगी में तुम्हें स्थापित करेंगे और, संभव है कि तुम देव तु...