20 फ़र॰ 2014

खुशी के फूल

 

प्रसन्नता के प्राप्त होने  इन्तजार
हर कोई , हर पल इतना बेकरार
सिर्फ औरो को दोष देने का सिलसिला
इसीलिए खुशी का फूल न खिला ………।
मुक्त होने का मन पर बांधते रहे हरदम
अवरुद्ध क्यों हुए चलते चलते ये कदम
उठती हुई टीस का कारण भी तो होगा
सच्ची क्षमा से इस पीड़ा का निवारण भी होगा ………।
घनगोर घटाए गिर आयी , फैलने लगा अँधेरा
चमकी हे बिजलियाँ वहीं , हुआ फिर सवेरा
फैलने दो आकाश तक प्रार्थना के प्रकाश को
जी लो जीवन जी भर के , जाने मत दो मधुमास को………।
भ्रम को जगह मत देना , झूठ को सतह मत देना
नीति के धर्मयुद्ध में , अनीति को फतह मत देना
अहसास मनुष्यता का रखकर जीने का मजा कुछ और हे
शकून देकर किसी को अमृत पीने का मजा कुछ और हे ………।
पल प्रतिपल हम भावों का संसार खड़ा कर देते हे
सम्भले न सम्भलता इतना व्यापार बड़ा कर देते है
वक़्त विश्राम लेने की सलाह देता हे सरेआम
हम  व्यस्त हे , बहुत जरुरी हे हमारे काम ………।
खुद से संवाद भी नहीं कर पाते  पूरी जिंदगी
अब निश्चय स्वयं कर लो ये पूरी हे या अधूरी जिंदगी ………।

1 टिप्पणी:

सुविचार अपने अतीत में जाकर अस्तित्व खोजना सिर्फ दुख को ही आमंत्रित करेगा।  स्वयं के बजाय दूसरों में, एकांत के बजाय भीड़ में, खुद के अनुभव के...