8 सित॰ 2014

घर और इंसान



हमने ठिकाने बना लिए और
उनको मकानों का दर्जा भी दिया
काश घर बनाये होते
बेशक इतना कर्जा भी लिया।
हर दीवार चमकीली हे
सजा दिया बहुत सुन्दर तरीके से
गरूर का सामान बना दिया
क्या सकून भी लाये कुछ सलीके से।
सब सामान की जगह बना दी
हर कोने को भर दिया
आ जाते बूढ़े माँ बाप साथ रहने को
लगता कुछ तो अच्छा कर दिया।
हम आग से खेलते हे
पानी में बहते हुए
जिंदगी गुजार लेते हे
अजनबी से रहते हुए।
दौरे खुदगर्जी के तूफान में
इल्म रास नहीं आएगा
चलते रहना , गिरना मत
वर्ना कोई पास नहीं आएगा।
मकान तो बहुत हे कहने को
घर कहाँ मिलते हे
शरीर बहुत हे चलते फिरते
पर साथ चलने को इंसान कहाँ मिलते हे ।

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