30 अप्रैल 2016

उम्मीदों का जहां


सन्नाटों में खुद के सायों से बाते करते हो
कहते कि अकेले नही, पर आहें भरते हो।
अरसा हो गया हमसे बात करके
अब ये मत कहना कि रोये नहीं जी भर के।
खुद को सजा देने की आदत तो पुरानी है
इश्क और इम्तहाँ की लंबी जो कहानी है।
कुछ बाँट लेते दर्द, ह्रदय तो हल्का हो जाता
गैर सही हम, अश्कों को अवकाश मिल जाता।
हर जगह सबको क़द्रदान कहाँ मिलते है
समय और संयोग से ही सुंदर फूल खिलते हैे।
पोंछ दो आँसू, उम्मीदों पर संसार चलता है
स्वीकार करो, आशाओं में प्यार पलता है।
कितनी देर हुई ये गिनती भी जरुरी नहीं
खुद को रोकना कोई मजबूरी नहीं।
कौनसे वक्त का इंतजार कर रहे हो
या किसी अनहोनी से डर रहे हो।
विश्वास करो, थाम लो मन की पतवार को
करीब है मंजिल, दस्तक तो दो द्वार को।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

सुविचार अपने अतीत में जाकर अस्तित्व खोजना सिर्फ दुख को ही आमंत्रित करेगा।  स्वयं के बजाय दूसरों में, एकांत के बजाय भीड़ में, खुद के अनुभव के...