Dec 17, 2014

काश हम समझ पाते




भीड़ के भावावेश का भाग बनकर
इतराते रहे कि मंजिले पास है
कुछ चेहरे हाँक रहे उस भीड़ को
सब समझते रहे कि हम भी कुछ ख़ास हे .…।
क्या खूब सबने बहते पानी में
हाथ धोये जी भर के
सुविधा से एकत्र हुए देखो
खुश सब मर्जी की करनी कर के .…।
पता चला कि पानी ही अच्छा नहीं है
उस भीड़ में कोई सच्चा नहीं है
पर झूठ अपना कर सच को खो दिया
तमाशा देख ज़माने का , ये दिल रो दीया .…।
अश्कों का मूल्य अब कहाँ होता है
जगते दानव दिन रात, मनुज सोता है
सीधे रास्ते छोड़कर सब उलझनों में पड़ गये
कल के मासूम आज कितना अकड़ गये .…।
दुआ-सलाम का जमाना गुजर गया
बस कोई इधर गया कोई उधर गया
महंगी हुई मुस्कानें, देखो इन चेहरों की
आवाजों का असर नहीं होता, सारी बस्ती बहरों की .…।
- अशोक मादरेचा

Efforts कोशिश

बेशकीमती वक्त को मत जाया कर हासिल होगी मंजिल बस तू कोशिश तो कर ...। निकल बाहर हर भ्रम से रोज घूमता इधर उधर थोड़ा संभल और चलने की बस तू कोशिश...