कुछ तो शून्य में गोते लगाने का मन करता है
अब तो ये तन भी बहुत अनशन करता है।
अब तो ये तन भी बहुत अनशन करता है।
बोझिल सी पलको के पीछे छुपे हुए संदेश
चुप रहकर , समय भी कितना दफन करता है।
चले बहुत दूर तक बड़े काफिलों के संग
वो ही कहानी फिर, इंसान अकेला भ्रमण करता है।
समझे कुछ लोग, जानकर भी ना समझे
बेमेल समूहों में मनुज, विष वमन करता है।
जान ले जहां कि छोड़ी नहीं उम्मीदें मेंने
आज भी फसादों में इंसान ही अमन करता है।
अशोक मादरेचा
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