जब हर्दय ने महसूस की भीतर से
रश्मियों के पुंज का प्रकाश
फैला सब दिशाओं में
छट गया युगों का अँधेरा
बस कुछ ही पलों में
नव चैतन्य और श्रंगार से
सुसज्जित हुआ आकाश
चाँद भी लज्जित हुआ
सौंदर्य के प्रतिबोध से
सितारे अठखेलियां करने लगे नभ में
ओस की शीतलता ठहर गयी
कोपलों पे आकर तो
ह्रदय को नृत्य करते देखा पहली बार
नयनों से अमृत बरसने लगा बरबस ही
साक्षात सूर्य की लालिमा को आते हुए
और भोर को अंगड़ाई लेते देखा
प्रकृति की विराटता का आनंद बोध कहूँ इसे
या सचमुच का ईश दर्शन
पुलकित हो गए रोम रोम
पर समकित होना बाकी है
मालूम नहीं , शायद यही शुरुआत हो ……....
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