जिन्हें मार दिया बेरहमी से आपने
वो परिंदे तो पानी की तलाश में थे।
सरहदों को नहीं समझते वो तो
प्यास बुझाने की आस में थे।
इंसानों ने बाटा जमीं आसमान को
वो तो उड़ते भी पास पास में थे।
गिरे तुम्हारी गोलीयों से जमीं पर
कितने सवाल उनकी साँस में थे।
यूँ मौत का सामान बनेगा इन्सान
मंजर ये निशां हर एक लाश में थे।
जिन्हें मार दिया बेरहमी से आपने
वो परिंदे तो पानी की तलाश में थे......।
……… अशोक मादरेचा
Beautifully described
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