Indian author Ashok Madrecha's blog on Hindi kavita poems, inspiration, positive quotes on happy life, money management, truth, thought, live better life, stay motivated, spiritual thoughts quotes on life.
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Aug 5, 2018
Jul 15, 2018
Nature कुदरत
दुआओं की इमारत में रहता हूँ
आपने पूछा इसलिए कहता हूँ
नायाब इंसानियत की मजबूत दीवारे
प्यार की खुशबू, मौजों के फव्वारे
शांति के सागर में चांदनी की छटा
फैले आकाश में बादलों की घटा
चहुँ ओर फैली कुदरत की सुंदरता
गुलशन में उमड़ती फूलों की मादकता
भोर की अंगड़ाई, शीतल पवन का चलना
पनघट की ओर पनिहारिनों का निकलना
सिंदूरी आकाश में सूरज का आना
चिड़ियों के झुंड का खूब चहचहाना
नवकोपलों में व्याप्त होता परिपूर्ण जीवन
अभिव्यक्ति में असमर्थ गदगद होता मन
कलकल करते झरनों के पानी पर पड़ता प्रकाश
प्रकृति की हर रचना देखो होती कितनी खास
सब ये सोचकर मन को त्राण मिलता है
वर्षा से जैसे मरुधरा को प्राण मिलता है
नमन है प्रकृति को बारम्बार यही कहता हूं
बस दुआओं की इमारत में रहता हूं ।।
नायाब इंसानियत की मजबूत दीवारे
प्यार की खुशबू, मौजों के फव्वारे
शांति के सागर में चांदनी की छटा
फैले आकाश में बादलों की घटा
चहुँ ओर फैली कुदरत की सुंदरता
गुलशन में उमड़ती फूलों की मादकता
भोर की अंगड़ाई, शीतल पवन का चलना
पनघट की ओर पनिहारिनों का निकलना
सिंदूरी आकाश में सूरज का आना
चिड़ियों के झुंड का खूब चहचहाना
नवकोपलों में व्याप्त होता परिपूर्ण जीवन
अभिव्यक्ति में असमर्थ गदगद होता मन
कलकल करते झरनों के पानी पर पड़ता प्रकाश
प्रकृति की हर रचना देखो होती कितनी खास
सब ये सोचकर मन को त्राण मिलता है
वर्षा से जैसे मरुधरा को प्राण मिलता है
नमन है प्रकृति को बारम्बार यही कहता हूं
बस दुआओं की इमारत में रहता हूं ।।
Jun 20, 2018
समझदारी (Intelligence)
Hindi poem on reality of present life. it describes about our illusion, selfishness, ego, power, relationship and complexity of life
किसमें खुशी खोजते कुछ भी भान नहीं
अच्छे बुरे का कुछ ध्यान नहीं
आखिर समझदार जो हो गए है।
अच्छे बुरे का कुछ ध्यान नहीं
आखिर समझदार जो हो गए है।
हर जगह खुदगर्जी का वर्तन
पसंद नहीं आते अच्छे परिवर्तन
आखिर समझदार जो हो गए है।
सिर्फ लेने में भरोसा, देने से कोसो दूर
तनाव और दुख में भी हंसने को मजबूर
आखिर समझदार जो हो गए है।
जमीन छोड़ दी, कुर्सियों के पीछे पड़ गए
चमक दमक में बचपन के दोस्त भूल गए
आखिर समझदार जो हो गए है।
सेहतमंद खाना छोड़ पिज्जों में उलझ गए
खुलकर हंसना छोड़ हम बहुत गम्भीर हो गए
आखिर समझदार जो हो गए है।
सहजता को मूर्खता कहते है
कुछ किताबें चाटकर गरुर पालते है
आखिर समझदार जो हो गए है।
अपनों के बीच भी परायों सा जीवन
हर जगह खुदगर्जी का वर्तन
आखिर समझदार जो हो गए है।
नकारते सच को मुखौटे पहनकर
अनसुना कर देते सच को सुनकर
आखिर समझदार जो हो गए है।
लगे है जोड़ने को पता नहीं कितना जोड़ेंगे
हम रिश्ते तोड़ देंगे पर जिद नहीं छोड़ेंगे
आखिर समझदार जो हो गए है।
-- अशोक मादरेचा
Jun 4, 2018
अनबोले संदेश (Unspoken Message)
बहाने को अश्क शेष नहीं थे
पथराए से दोनों नयन थे
इंतजार के भाव थे
बेशक दिल में कहीं तो घाव थे।
वो नियति के मारे
शून्य को घूरते थे
आकाश भरा अकेलापन
शायद किसी को ढूंढते थे।
जैसे कई तूफान गुजरे उन पर से
बिखरे केसूओं से झांकते थे
गुजरते राहगीर उस तरफ
कुछ अजीब से आंकते थे।
होठों की कंपकपाहट के बीच
शब्द आकर तो लेते थे
मैं करीब गया, पर समझ नहीं पाया
अजनबी "अशोक " को वो कुछ तो कहते थे।
पथराए से दोनों नयन थे
इंतजार के भाव थे
बेशक दिल में कहीं तो घाव थे।
वो नियति के मारे
शून्य को घूरते थे
आकाश भरा अकेलापन
शायद किसी को ढूंढते थे।
जैसे कई तूफान गुजरे उन पर से
बिखरे केसूओं से झांकते थे
गुजरते राहगीर उस तरफ
कुछ अजीब से आंकते थे।
होठों की कंपकपाहट के बीच
शब्द आकर तो लेते थे
मैं करीब गया, पर समझ नहीं पाया
अजनबी "अशोक " को वो कुछ तो कहते थे।
Apr 28, 2018
पीछा करता सत्य (Chasing Truth)
जिन्हें समय दिया जिंदगी भर
वो कहते है उन्हें फुरसत नहीं ।
व्यस्त है या बनाते बहाने
जरूर कुछ, गलतियां तो हुई ।
नए मित्रों के संग, नए नए प्रसंग
परिस्थितियां आज, बदल गई ।
जवानी है, ऊर्जा भी चरम पर
दृष्टि शायद कुछ बदल गई ।
अहसास कराने, कुछ भी कर लो
नावों की पतवारें तो फट गई ।
सब कुछ गतिमान अमर्यादित सा
शर्मो हया भी तो मिट गई ।
कुछ अनहोनी का अंदेशा हर किसी को
मानवता की तो नींव हिल गई ।
बेशुमार दौलत की उपलब्धियां
पर सेहत उनकी लील गई ।
सबके सब सपनों के सौदागर
सच्चाई अंदर ही अंदर घुट गई ।
बतियाना तो दूर, वो रुकते भी नहीं
कैसे बताऊं उनकी गाड़ी तो छूट गई ।
----- Ashok Madrecha
Feb 11, 2018
दोस्त को पुकार (calling the friend)
सपनों का पीछा करता मनुज
गंतव्य को भूल बैठा
जब मंजिलें ना मिली
तो जहां रुका उसे ही मंजिल मान बैठा
जब कुछ खास हासिल ना हुआ तो
कुछ अखबारों की सुर्खियों में आकर
जीवन को धन्य मान बैठा...।
खैर जो हुआ सो हुआ
पर इसको आदत सी बना ली
अब तो नित्य ही कृत्रिम जिंदगी जी रहा
घूंट जहर के चुपचाप पी रहा
घूंट जहर के चुपचाप पी रहा
वो बतियाने को दोस्त भी ना साथ रहे
कुछ कहे तो भला किसको कहे....।
इतना आगे आ गए
कितने पीछे छूट गए
नदियों में पानी बहुत बहा
किनारों ने कितना सहा
चले थे कहां , मुकाम कुछ और मिले
भूलकर सब शिकवे और गिले
आ मेरे दोस्त हम फिर मिले
आ मेरे दोस्त हम फिर मिले....।
Nov 23, 2017
कविता (Hindi Poem)
मुझे चुनोतियाँ तो हर रोज मिलती है
मेरी कविता, सिर्फ सत्य जो कहती है।
ये कभी श्रंगार तो कभी वीर रस कहती है
निर्भय हो सत्ता के गलियारों से भी गुजरती है।
इस पर हर तूफान भी गुजर जाता
आकाश भी सीमित नही कर पाता।
रोकने की हर कोशिश इसे बृहत्तर कर देती
सूखते शब्दों के झरनों को फिर भर देती।
ये कविताएँ भूगोल नही मानती
स्वछंद ये, खुद के अस्तित्व को नही जानती।
बरबस इनका बनते जाना
शब्दों का चितवन में आना जाना।
ये तो बस शुरू होती है
नही कभी ये अंतिम होती है।
कितनों ने समझा इसे और आनंद लिया
बेशक कुछ बिरलों ने जी भर के इसे जिया।
बस इसे एक प्रेम ही नियंत्रित करता है
अंतर्मुखी बनाकर अभिमंत्रित करता है।
जब प्रेम से अध्यात्म की ओर अग्रसर होती है
कालजयी बन अक्सर वो कविता अमर होती है।
मेरी कविता, सिर्फ सत्य जो कहती है।
ये कभी श्रंगार तो कभी वीर रस कहती है
निर्भय हो सत्ता के गलियारों से भी गुजरती है।
इस पर हर तूफान भी गुजर जाता
आकाश भी सीमित नही कर पाता।
रोकने की हर कोशिश इसे बृहत्तर कर देती
सूखते शब्दों के झरनों को फिर भर देती।
ये कविताएँ भूगोल नही मानती
स्वछंद ये, खुद के अस्तित्व को नही जानती।
बरबस इनका बनते जाना
शब्दों का चितवन में आना जाना।
ये तो बस शुरू होती है
नही कभी ये अंतिम होती है।
कितनों ने समझा इसे और आनंद लिया
बेशक कुछ बिरलों ने जी भर के इसे जिया।
बस इसे एक प्रेम ही नियंत्रित करता है
अंतर्मुखी बनाकर अभिमंत्रित करता है।
जब प्रेम से अध्यात्म की ओर अग्रसर होती है
कालजयी बन अक्सर वो कविता अमर होती है।
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प्रयास (Efforts)
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हास्य कविता - See the Video https://www.youtube.com/watch?v=TiYJqeVbRuo