सामान्यतया हम सभी जीवन को तीन दशाओ में व्यतीत करते है और पूरे जीवन में इसके बारे में बहुत कम सोचते है। आइये इन तीनों दशाओं के बारे में कुछ जानने की कोशिश करे।
धन संग्रह दशा :
प्रथम
जीवन का प्रमुख भाग रोजगार, धन दौलत कमाने में निकलता है। स्वाभाविक है कि
कोई भी धन के द्वारा अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहेगा। धन से संसार की
अधिकांश आवश्यकताएं पूरी हो सकती है ऐसा विश्वास भी हर जगह पाया जाता है।
धन महत्वपूर्ण है परंतु कितना ? यदि धन हमें शांति के साथ ख़ुशी दे रहा है
तो ठीक है परंतु धन के कारण ही घर परिवार की सारी खुशियों पर ग्रहण लग जाये
तो कोई भी विवेकशील मनुष्य इस पर विचार करेगा और जरुरत हो वैसे जीवन में
परिवर्तन भी लायेगा। धन प्राप्ति के संसाधन और तरीके कैसे हो इस पर चिंतन
की जरुरत है।
प्रसिद्धि और मान्यता की दशा :
ज्यो ही धन की
उपलब्धि के नजदीक पहुचते है हम सभी जीवन में एकाएक प्रसिद्धि नाम के लड्डू
को खाने के लिए बेचैन हो जाते है। पता नहीं क्यों हमें ऐसा लगने लगता है कि
जितना लोग हमें मान सम्मान देंगे उतना ही जीवन धन्य होता जायेगा। इस
प्रसिद्धि को पाने के लिए हम कई तरह की योजनाएं बनाने लग जाते है और कई बार
तो अनचाहे लोगों को भी मित्र बना लेते है। मूल रूप से सोचने वाली बात ये
हे की क्या किसी व्यक्ति, समूह, मिडिया, या संग़ठन के मानने से ही आप
सम्मानित होते है या आपकी अंतरात्मा के आईने में सत्य के रुबरु होकर अच्छा
महसूस करते है। क्यों हम स्वयं को इतना लघु मान लेते है ? प्रसिद्धि की इस
झूठी दौड़ में पैसा और मन की शांति, दोनों को दांव पर लगा देना कहाँ की
समझदारी है? यह महादशा धार्मिक और अधार्मिक दोनों पर समान रूप से हावी होती
है।आजकल तो अखबारों की सुर्खियों में आने के लिए काफी बड़ा विनियोग हो रहा
है। दुःख तो तब और बढ़ जाता है जब आपने पैसे भी खर्च कर दिये और मनचाहा
परिणाम नहीं मिला। जीवन की इस दशा को में अपने शब्दों में शनि की महादशा भी कह दू तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
दिग्भ्रांति की दशा :
यह
दशा उपरोक्त दोनों दशाओं के साथ साथ चलती है और मौका देखकर इंसान को सतत
परेशान करती रहती है। इस दशा में कोई भी मूल उद्देश्यों यानि धन प्राप्ति एवं
प्रसिद्धि हेतु इतना भृमित और व्यस्त हो जाता की उसे संबंधों यानि
मित्रता, परिवार, समाज आदि के बारे में या तो सोचने का समय ही नहीं मिलता
या वो उन सभी को खुद के हिसाब से परिभाषित करने लग जाता है।
एक कथित रूप से धनी और प्रसिद्ध व्यक्ति के दिग्भ्रमित होने के लक्षण इस तरह से पाये जाते है :
1. हंसी में कमी या बनावटी हंसी
2 हर समय महत्वपूर्ण दिखने की बीमारी
3 असहज पहनावा
4 स्वयं को बड़ा ज्ञानी मानना
5 समारोह इत्यादि में चमचो से गिरा होना
6 सही दोस्तों की भारी कमी
7 व्यस्तता दिखाने में महारथ
8 रिश्तदारों एवं मित्रों पर उपेक्षा भाव
9 प्रभुत्व स्थापित करने की प्रबल इच्छा
10 मानसिक तनाव
11 इतना सब कुछ होकर भी शरीफ होने का नाटक।
ये
कुछ लक्षण बीमारी के आरम्भ के बताये गए है । गंभीर अवस्थाओं में इन
लक्षणों की संख्या बढ़ जाती है। कुछ लक्षण एक आम आदमी तुरंत ताड़ लेता है तो
कुछ लक्षणों को समझने के लिए अनुभव की जरुरत होती है।
संसार में
सभी अपना कृतत्व करते है और अपने हिसाब से जिंदगी जीने का उपक्रम करते है।
प्रश्न पैदा होता है कि क्यों हम जीवन को इतना उलझा देते है? क्यों हम
स्वयं अपने आप पर भरोसा नहीं करते ? आज भी सच्चे और
अच्छे लोगो की बहुत भारी मांग है पर हम सभी छोटे रास्तो की तलाश करते रहते है । शायद यही वजह
है कि हम अंदर से खोखले होते रहते है और फिर औरों की मान्यताओं और सम्मान
के लिए किसी भी हद तक गिर जाते है। जीवन और आत्मा के संबंध को हमें हमेशा
याद रखना चाहिए ताकि हम अपने विवेक से ससमय समझ सके की कौनसी दशा हम पर
हावी हो रही है और क्या परिवर्तन लाना चाहिए।
अशोक मादरेचा