Closeness अपनापन
उचक के नींद खुली
कुछ आवाज़ आई, शायद
ये
तेरे पास होने का अहसास था
बीते हुए पल तैरने लगे
रात के सन्नाटों में
तुम्ही दिखते लगे उन आहटों
में।
एक मीठा सा अनुभव
तेरी यादों का इस कदर
साथ होने का,
कभी तेरे हाथो ने
मेरे सर को सहलाया था
और में सो गया था निश्चिंत सा
फिर तेरे आसुओं की
दो बूंदों का अचानक गिरना
मेरा हड़बड़ा कर उठना
और तुमसे मिलकर
जी भर के रोना
आज फिर याद आता है।
बहुत ज्यादा दौड़ लिया
कितना वक्त पीछे छोड़ दिया
आज फिर से तेरा हाथ थामे
खिड़कियों से आती मद्धिम रोशनी
में
चांद से बतियाने का मन करता है
मौन की भाषा में बहुत कुछ
कहने को मन करता है
इस रात की निरवता साक्षी है
कि इन रिश्तों की महक गहरी है
है कुछ खास जो मेरी नींद उचटती
है
मुझे जगाकर ये कुछ कहती है।