
शब्दो में समेटना मुश्किल है मन को
बेलगाम होकर छीन लेता ये अमन को। 
ये खुश तो दुनिया हरी भरी हो जाती है
ये रूठा तो सब योजनाएं धरी रह जाती है। 
समय से परे, पल पल में रंग बदलता है
अनिश्चय में तो ये नटखट खूब मचलता है। 
हवा की छोड़ो, आवाज से तेज दौड़ता 
समझना मुश्किल, ये निशान भी नहीं छोड़ता। 
गति पे सवार, कल्पनाओं के साथ रहने का आदी
कौन छीन सकता है भला मन की आजादी। 
देश काल को ये कहाँ मानता
मर्यादित होना नहीं जानता। 
मन का वेग प्रबल होता है
सतत जागरण, ये कहाँ सोता है।
अपना पराया ऊँच नीच , मन के लिए विचार है
अपरिमित ऊर्जावान , मन तो अनाकार है। 
वो भावों में बसता, भावों में जीता है
भरा हुआ कभी, कभी वो रीता है। 
कभी संयत, कभी उन्मुक्त सा हो जाता
बिखर जाता ये कभी सयुंक्त सा हो जाता। 
त्वरित बदलावों के नेतृत्व को हर वक़्त तत्पर
ये मत पूछना, चलेगा ये कौनसे पथ पर। 
अवसादों से ग्रसित होता जब ये सिमट जाता
उत्साह में आनंदित होकर खुशियों से लिपट जाता। 
यात्रा का शौक इसे पल में अंतरिक्ष को नाप लेता
हर परिवर्तन को ये पहले से भांप लेता। 
गतिशील मन रुकता नहीं, इसे तो समझना पड़ता है
ना समझों तो आजीवन झगड़ना पड़ता है। 
मन को जो मना लिया हर राह आसान बन जाती
वर्ना कितनों की तो जान पे बन आती। 
समतल मैदानों में कभी कंदराओं में जाकर आता
नदियों में कभी सागरों की लहरों से बातें कर आता। 
कभी अर्थपूर्ण ये कभी निरर्थक घूम लेता
बखूबी आसमान के इंद्रधनुषी रंगों को चूम लेता।                       
कहने को ये तन इसका घर होता है
पर ताजिंदगी ये तो बेघर होता है। 
कभी ये हल्का, कभी बोझिल हो जाता
कभी हँसाता, कभी खुद ही रो जाता। 
कलुषित होता कभी ये निर्मल हो जाता
पहाड़ों से प्रबल कभी ये निर्बल हो जाता। 
सक्रिय होता कभी ये निष्क्रिय हो जाता
कभी नीरस तो कभी प्रिय हो जाता। 
ऊपर नीचे, कभी बीच में लटक जाता
किसी पे फ़िदा हो गया तो अटक जाता।
दयावान कभी ये निष्ठुर हो जाता
कभी ह्र्दय में तो कभी दूर हो जाता।
मन माने तो रिश्ते गहरे हो जाते
मन रूठे तो अपने भी दूर हो जाते। 
अबाधित मन को जिसने जान लिया
वो सिद्ध बने साक्षात् जग ने भी ये मान लिया।