23 मार्च 2017

नियति (Destiny)



पल पल में बहुत कुछ घटित होता
कुछ मन का, कुछ अनचाहे होता
कुछ बदल देता, कुछ बदल जाता
कभी अच्छा, कभी बुरा लग जाता ।

स्वीकृति मन से करो या कहो मज़बूरी
यहाँ हर इच्छा किसकी होती पूरी
मालुम है काम सबके है बड़े जरुरी
पूरी करते जाओ, इच्छाएं रहती अधूरी ।

घूमते नक्षत्र और सितारें भी निरंतर
घूमते परिंदे और इंसान भी इधर उधर
आता नहीं कही पर कुछ भी अंतर
थका जाता मनुज, बहुत कुछ कर कर ।

जान लो कि नियति क्या कहती है
कभी सोचा ? ये जमीं कितना सहती है
रुकना स्वभाव नहीं, नदियाँ तो बहती है
कुछ भी खाली होता, वहाँ हवाएँ तो रहती है ।

काल को कौन परिभाषित कर पाया
कुछ लिखा वो भी लगता है माया
समय से बंधा हुआ यौवन और काया
ना लोग रहे ना उनका कोई साया ।

सब्र करो आज भी आँखों में आंसू आते है
पीड़ा भी होती, वो उम्मीद भी जगाते है
कुछ लोग है जो खूब रंग जमाते है
नियति भी बदल दे ऐसा खेल रचाते है ।

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