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Aug 14, 2015

प्रयास ( Effort )



प्रयास की दिशा सही हो
भाव अपने वही हो।
निरंतर बस लगे रहो
कर्म सलीके से करते रहो।
लगन से हर मुकाम मिलता है
वक्त पे ही सुन्दर फूल खिलता है।
धैर्य की परीक्षा तो होगी
काम की समीक्षा भी होगी।
अपनी आशा और जोश साथ रखे
विश्वास रखे और खुद को भी परखे।
हर ऊँच नीच को अपना लेना
आत्म विश्वास को परम मित्र बना लेना।
भीड़ की सोच में उलझ मत जाना
तुम खास हो अपनी मंजिल खुद पाना।
बिल्कुल मत घबराना
प्रयासों के घनत्व को बढ़ाना।
दुनियाँ भी आसपास घूमेगी
सफलता तुंम्हारे कदम चूमेगी।
.......अशोक मादरेचा

May 28, 2015

आत्मविश्वास (Self Confidence)



अंतर से उठ रही अविराम तड़पती आवाज
ओ प्रिय तन्हाई पास आओ आज  .…।
तमन्नायें दबती रही, निराशाएं घर करती रही।
झूठे दिलासों के बीच, अमर आशाएं मरती रही .…।
घने कोहरों के बीच, जंगलो में टहलता रहा
कृतत्व और पुरुषार्थ, करने को मचलता रहा .…।
अब सन्नाटों में समय से, कुछ प्रश्न करने की अभिलाषा है
उत्तर मिले या ना मिले, बरसो पुरानी जिज्ञासा है .…।
कहूँगा समय को ,सत्य साथ लेकर आना
ना चलेगा कोई बहाना, मुझे तो बस उत्तर पाना .…।
उलझनों से निकलने की ठान ली है
वक़्त की नब्ज जो पहचान ली है .…।
अब अवरोध सभी हट जायेंगे
गम के बादल छट जायेंगे .…।
विसंगतियों को चुनोती देता हूँ
पूर्ण विश्वास से संकल्प लेता हूँ .…।
समता को अपनाकर,अंतरिक्ष से आगे तक इरादा है
आत्मबिश्वास के आगे ये लक्ष्य कौनसा ज्यादा है .…।
अब तूफ़ान मुझे रोक नहीं पाएंगे
राहों में कोई टोक नहीं पाएंगे .…।
रुक गए यो बहुत खलेगा
घबराने से काम नहीं चलेगा .…।
सब दिशाओं को निर्देशित कर दूंगा
मुरझाए दिलों में नयी उर्झा भर दूंगा .…।
पल प्रति पल प्रयत्न करूँगा
मै विजय श्री का वरण करूँगा .…।
मै विजय श्री का वरण करूँगा .…।

…अशोक मादरेचा

Apr 26, 2015

आशा (Hopes)



समर्पण  के सेतु से परमात्म तक की यात्रा
आत्मा के हेतु से बंधे हुए हर असहज को
सहज कर देने की ऊर्जा और दिशाओं को
सीमित कर दे ऐसी कृपा की मात्रा। 
हर पल के अस्तित्व को नव आयाम देती हुई
स्वयं को पहचानने की लालसा का अनुभव
होना तो शुरुआत है पर यही मंजिलो तक का
सफर करा देती है विश्राम भी देती हुई।
इरादों का बुलंद होना, और सतत परिश्रम का पालन
कुछ दूर नहीं होता फिर, मनुष्य के लिए
क्या करना है, क्यों करना है, कब करना है
इस उलझन से निकले तो, सफलता करेगी गुंजन।
पुरुषार्थ और आडम्बर का फर्क स्पष्ट रहे हरदम
व्यर्थ में जाया ना करे समय और साधनों को
प्रमाद से दूर रहकर, आनंद के भावों में विचरे बस
इतनी सी बातें है, फिर क्यों कष्ट सहे हम।

-- अशोक मादरेचा

Feb 27, 2015

समाज की सच्चाई


जाने अनजाने हम क्यूँ अमरता का आभास करते है
खूब करते दिखावा और कितनों का परिहास करते है।
हर बात में अपने अहम् का पालन अब सहज हो चला
कुछ करने की जल्दी में रिश्तों की चिंता क्यूँ हो भला।
अर्थ के बुखार में समय सीमित लगने लगा है
क्या बुढ़ापा क्या जवानी, बचपन भी रोने लगा है।
हर मनुज दोहरी जिंदगी जीने को मजबूर हुआ
भाग रहा इधर उधर स्वयं से कितना दूर हुआ।
अपनों के बीच बैठ बतियाना अब कहा दिखता है
हर चीज के होते मोलभाव , रोज जमीर बिकता है।
बटोरतें सुर्खियां अख़बारों में विज्ञापनों का दौर चल रहा है
सिर्फ पदों का बंटवारा , देखो कैसे समाज बदल रहा है।
हुए कब्जे पानी और जमीनों पे हवाएं अब मुश्किलो में है
धर्म राजनीति का शिकार है न मालूम और क्या दिलो में हे।
ओरो की छोड़ो परिवारों में राजनीति हावी होने लगी
उलझनों के दावपेच में करुणा मैत्री तो खोने लगी।
जरूरतों के पहाड़ के नीचे दबा इंसान कितना अकेला है
साफ है मकान उसका पर अंदर से कितना मैला है।
अहसास तो होता है पर स्वीकार नहीं करते
नियति कहके उसको सब तिल तिल मरते।
हर ख़ुशी कल पर टाल कर वर्तमान की बलि चढ़ा दी
जो मिला उसमे सबर नहीं, नहीं मिला वहाँ नजर घड़ा दी।
सरलता छोड़कर उलझनों को अपनाया
खुद के बजाय ओरों को सुधारने में वक़्त गवांया।
नेता की पदवी मिली समाज में तो मन बहुत इठलाया
हर वक़्त जुगाड़ में रहे कि कौन क्या लाया।
शिकायत है इनको आजकल नींद नहीं आती
मन अशांत है खुशियां करीब नहीं आती।
एक भी ऐसी रात नहीं ये कोई अचरज की बात नहीं
वो भीड़ में अलग दीखते होंगे पर कोई उनके साथ नहीं।
मै सच कहता हूँ इस महफ़िल में
बुरा मत लगाना कोई भी दिल में।
यहाँ जीवन तमाशा बन गया और सब चुपचाप है
अब ऐसा मत कहना कि यहाँ बोलना भी पाप है।
वक़्त रहते हम्ही को बदलाव लाने होंगे
टूटते परिवार और रिश्तों को बचाने होंगे।
गौरवशाली है संस्कार हमारे भावी पीढ़ी को ये समझने दो
अवसर दो अशोक अब उनको आगे बढ़ने दो।

Jan 10, 2015

पिता का पुत्र को संदेश




मुखर कर उन्मेष को उत्कर्ष की तरफ
प्रयत्न कर उखाड़ दे हर मायूसी की बर्फ।

ये तूफान ही रास्ता बनाएँगे बस जान लेना
वक़्त रहते रास्तों का मिजाज पहचान लेना।

दूर है मधुमास अभी बहुत बीहड़ में चलना बाकी
उलफत में मत रहना ये शुरुआत की है झांकी।

दो दो हाथ मुश्किलों से होना बहुत आम होगा
इंसानों की दुनियाँ में ये वाकया सुबह शाम होगा।

लक्ष्य पे नजर रखना दिन में भी कदम बहकते है
जरा सम्भलना हर गली मोहल्लों में इंसान रहते है।

आकाश नापना है तो इरादों में जोश होना चाहिए
दूर कितनी है मंजिल इसका भी होश होना चाहिए।

तान लो सुनहरे वितान वक़्त तुम्हे इंद्रधनुषी रंग दे
नया सवेरा हर सुबह तुम्हे चिर आशा की उमंग दे।

----  अशोक मादरेचा

Dec 17, 2014

काश हम समझ पाते




भीड़ के भावावेश का भाग बनकर
इतराते रहे कि मंजिले पास है
कुछ चेहरे हाँक रहे उस भीड़ को
सब समझते रहे कि हम भी कुछ ख़ास हे .…।
क्या खूब सबने बहते पानी में
हाथ धोये जी भर के
सुविधा से एकत्र हुए देखो
खुश सब मर्जी की करनी कर के .…।
पता चला कि पानी ही अच्छा नहीं है
उस भीड़ में कोई सच्चा नहीं है
पर झूठ अपना कर सच को खो दिया
तमाशा देख ज़माने का , ये दिल रो दीया .…।
अश्कों का मूल्य अब कहाँ होता है
जगते दानव दिन रात, मनुज सोता है
सीधे रास्ते छोड़कर सब उलझनों में पड़ गये
कल के मासूम आज कितना अकड़ गये .…।
दुआ-सलाम का जमाना गुजर गया
बस कोई इधर गया कोई उधर गया
महंगी हुई मुस्कानें, देखो इन चेहरों की
आवाजों का असर नहीं होता, सारी बस्ती बहरों की .…।
- अशोक मादरेचा

Nov 22, 2014

उम्मीदों का आँगन



वक्त के भाल पर सिलवटें बढ़ने लगी
मंजिल साधने आरजु उमड़ने लगी।
जान लो कि में ना थका नहीँ हारा हूं
आज भी बदस्तुर सिर्फ तुम्हारा हूँ।
तपते रेगिस्तान में फुहार आई
आप क्या आये बहार आयी।
इंतजार तो बहुत हुआ पर गम नहीं
सामने हो आप ये कुछ कम नहीं।
वादा करो हर वक़्त रूबरू रहोगे
हमसे हर गिला शिकवा कहोगे।
रोशन हुआ जहां आपकी नजरो से
क्या खूब निकले हम सब खतरों से।
साकार करेंगे हर एक सपना
आबाद रहे ये सकून अपना।

- अशोक मादरेचा

Sep 23, 2014

सच्चाई


ख़ुशी की खोज बाहर करना
फिर पुरानी गलती दोहराना
सुख शांति के दो पल पाने की
अभिलाषा बस कुछ कर जाने की
कोशिश करना व्यर्थ नहीं होता
प्रयत्नों से कौन समर्थ नहीं होता
ले नहीं पाते जिंदगी उतना देती हे
ज़माने का दोष नहीं, कर्मो की खेती हे
कई बार साफ़ दिखता भी हे
पर समझ कम पड़ जाती हे
दिग्भ्रमित से मंजिलो की तलाश में
कुछ मिलेगा हर वक़्त इसी आस में
स्वयं की व्यवस्था में लगे दिन रात
झूठ के सहारे करते रहे हर बात।
जब सच्चाई सामने प्रकट होगी
स्थिति स्वयं बड़ी विकट होगी
दर्पण से सामना नहीं कर पाओगे
अपना चेहरा खुद ही छुपाओगे
समय को कौन रोक पाता हे
ये तो बस बीतता जाता हे
ये तो बस बीतता जाता हे.…।

प्रयास (Efforts)

जब सब कुछ रुका हुआ हो तुम पहल करना निसंकोच, प्रयास करके खुद को सफल करना। ये मोड़ जिंदगी में तुम्हें स्थापित करेंगे और, संभव है कि तुम देव तु...