होड़ की दौड़ ( Running and Competition )
होड़ की दौड़ ( Running and Competition )

कुछ करने की चाहत
अति आवेश से आहत
भाग रहा मनुज दिशा विहीन सा
संतुलन खो बैठा पर
श्रेष्ट कहलाना जो पसंद हे
व्यथित अंदर से बहुत हे अकेला।
कल के सुख की तलाश में
आज को पूरा भुला दिया
वक़्त को पकड़ने चला पर बेबस सा
साधने लगा निजी हित
और ढूंढने लगा मंजिल वहाँ
बहुत रप्तार से चला किन्तु
क्या साधना ये उलझन
सुलज नहीं पाई
सोचा गहराई में जाकर तो
आँखे ही भर आई
सामने जिंदगी की किताब के
बहुत कम पन्ने बाकी थे
पढने को .. काश
कोई तो समझाता मनुज को
इस होड़ की दौड़ में ……………।

कुछ करने की चाहत
अति आवेश से आहत
भाग रहा मनुज दिशा विहीन सा
संतुलन खो बैठा पर
श्रेष्ट कहलाना जो पसंद हे
व्यथित अंदर से बहुत हे अकेला।
कल के सुख की तलाश में
आज को पूरा भुला दिया
वक़्त को पकड़ने चला पर बेबस सा
साधने लगा निजी हित
और ढूंढने लगा मंजिल वहाँ
बहुत रप्तार से चला किन्तु
क्या साधना ये उलझन
सुलज नहीं पाई
सोचा गहराई में जाकर तो
आँखे ही भर आई
सामने जिंदगी की किताब के
बहुत कम पन्ने बाकी थे
पढने को .. काश
कोई तो समझाता मनुज को
इस होड़ की दौड़ में ……………।