प्रकृती के बिखरे ख़जाने को निहारते रहे
निरन्तर , बस बरबस से……
हरी चादर सि ओढ़ा दी , दूर तक वादियो में
सुदूर तक बर्फ की सफेदी और भोर की धूप
उमड़ते सैलानी , घाटी कि ओर पुरे मन से ....
निखरती छटाएँ , उमड़ती घटाएँ
नीले अम्बर से धरा तक फैले सौंदर्य के
अदभुत से नज़ारे , सचमुच द्रश्य नयनाभिराम
हर अवयक्त को उन्मुक्त करके व्यक्त करता
ठंडी स्वछ हवाओं का तन को छूना और
श्वासों को गहरा देना , रोमांचित करता हर पल
स्वयं को करीब लाने का , सुनहरा अवसर
सतत उपस्थित आनंद की अनुभूति
रोजमर्रा से दूर जिंदगी से रुबरु होने का अवसर
कितना जरुरी हे जिंदगी में ……..........……
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