Jul 4, 2016

टूटे पत्ते का दर्द (Pain of Broken Leaf)










वो कल कोपलों के बीच सबका प्यारा था
हरित चमक लिए, अनूठा वो सबसे न्यारा था।
ओस की बुँदे भी आकर उसपे ठहरती थी
हर चिड़िया उसका स्पर्श पाने को रूकती थी।
वो हरा भरा, उस पेड़ की डाल का गौरव था
उसकी दुनियाँ आबाद थी, सारा वैभव था।


समय की यात्रा में
वो रंग खोने लगा
हरा था , बाद में पीला पीला होने लगा।
एक दिन वो सूख गया और रोने लगा
जगा हुआ उसका संसार सोने लगा।
किसी ने नहीं सुनी उसकी, हवा का झोंका आया
छिटक गया वो डाल से, बोलो कुछ समझ में आया।
हर कोई दोहराता ये, बस वक़्त अलग होता है
फिर भी इंसान में गरूर कितना होता है।
आपाधापी में जिंदगी खूब मचलती, तड़पती
चेहरों पे नकाब डालने से उम्र नहीं बदलती।
कुछ अच्छा कर लेने की ठान लो
मनाओ मन को या खुद ही मान लो।

Jun 17, 2016

दोहरी जिंदगी (Living with Double Standard)


समय के साथ हमारी प्राथमिकताएँ एवं अपेक्षाएँ दोनो बदलते रहते है परन्तु इन बदलावों की सार्थकता को हम कितना परखते है इस पर विचार की आवश्यकता है। किसी को दो जून की रोटी नसीब नहीं तो किसी को पैसा कहा रखना इस सब से फुरसत नहीं। परिवारों में बढ़ती हुई दरारें अनियंत्रित महत्वाकांक्षाओं एवं निजी सोच की उपज है।

कुछ सटीक उदाहरण :

पिता को सिर्फ कमाने से फुरसत नहीं
माँ कहती है मुझे स्वतंत्रता नहीं
बेटा बेटी अब माँ बाप को अब आदर्श नहीं मानते
रिश्तेदार अब औपचारिकता निभाते है
समाज शातिर लोगों का पिछलग्गू हो चला
धर्म के नाम पर दुकाने चल रही
दोस्त सिर्फ ख़ुशी में हिस्सा चाहते है

ऐसे में इंसान कितना अकेला हो गया है। अपनी संवेदनाओं को लेकर वो किसके पास जाये। किसको अपना दुखड़ा सुनाये। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सब कुछ खत्म हो गया। व्यक्ति को अपनी गतिविधियों को समझ कर उन्हें समायोजित करना पड़ेगा। सिर्फ दूसरे क्या सोचेंगे इस डर से बाहर आना होगा। यदि हम अच्छा कार्य कर रहे परन्तु दूसरे दिन अखबारों में नाम या फ़ोटो नहीं छपा तो हमारा रक्तचाप बढ़ जाता है, जरा सोचिये क्या यही जीवन है? क्या किसान इतनी विपरीत परिस्थितियों में मेहनत करके राष्ट्र को अनाज देता है और एक सैनिक अपने जीवन की आहुति दे देता है, क्या वे सिर्फ अखबारों की सुर्खियां बटोरने के लिए करते है। हम छोटी सोच वाले बड़े लोग जैसा बर्ताव करते है। इस तरह का बनावटी व्यवहार हमें अंदर से बेहद कमज़ोर बनाता रहता है। इस कमजोरी का असर इतना व्यापक है की माँ बाप अपनी संतान को कुछ अच्छी सीख देने की इच्छाशक्ति भी खो चुके है। जब समय निकल जाता है तो सिर्फ किस्मत को दोष देकर मन को मनाते है। 

हम में से कितने लोग अपने बच्चों को किसी वीर पुरुष, महापुरुषों की कहानियां सुनाते है या उनसे सम्बंधित साहित्य उपलब्ध कराते है ? सत्य तो यह है कि हम स्वयं ही इसे या तो जरुरी नहीं समझते या हम खुद भी कुछ नहीं जानते। बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते है बचपन से उन्हें जैसा सिखाया या दिखाया जायेगा वैसा ही उनका आचरण आकार लेता जायेगा। एक बार अवचेतन मन प्रौढ़ हो गया तो उसका बदलना बहुत मुश्किल हो जाता है। 

मैने स्वयं कई मौकों पर लोगों को ऐसे प्रश्न करते देखा और ऐसा लगा कि हम जीवन के बारे में जानने की जरूरत तो महसुस करते है परंतु उसे हमारी प्राथमिकताओं में सम्मिलित नहीं करते और शायद इस उधेड़बुन में जिंदगी अपने आखरी पड़ाव तक पहुँच जाती है।

आपको कुछ शानदार और आँखे खोलने वाले उदाहरण प्रस्तुत करता हूँ :

1. एक व्यक्ति सारी उम्र मेहनत करके पैसा जोड़ता है, परंतु संतान सुख नहीं होने के कारण वो अंत समय में उस पैसे को अन्य रिश्तेदारों के हाथो सौपने को मजबूर हुआ।
2. एक नेता जिसे लोग सलाम करते थे, अचानक किसी क़ानूनी प्रक्रियाओं मे फंस गया और आगे का
 जीवन दयनीय हो गया।
3. एक डॉक्टर अपने पुत्र का सही कॅरियर नहीं चुन पाये और अब निराश हो गए।
4. एक इन्जीनियर के चार पुत्र है परंतु आपसी मनमुटाव से पुरे घर में तनाव का माहौल सा है।
5. एक अच्छे खासे व्यापारी अपनी पैसे की तरलता को नहीं समझ पाये और बड़ा कर्ज का बोझ कर बैठे।
6. एक महाशय का कसूर सिर्फ इतना कि प्रकृति ने उनको बार बार अवसर दिए पर उन्होंने कभी गंभीरता
  से उन पर निर्णय नहीं लिए, नतीजा, आज उनका अधिकांश समय दूसरों को कोसने में बीतता है।
7. एक मोहतरमा ने कई प्रस्ताव ठुकरा दिए और अब बिना शादी किये अकेले जीना स्वीकार कर लिया।
8. हमारे एक मित्र को कोई भी नोकरी अच्छी नहीं लगती और वो हर 6 महीने में नई नोकरी की तलाश में व्यस्त हो जाते है। कहते हे आजकल अच्छे लोग ही नहीं रहे।

उपर्युक्त सभी उदाहरण कोई नकारात्मकता फ़ैलाने के उद्देश्य से नहीं लिखे गए वरन सभी इस बात के घौतक हे कि हम किस हद तक दोहरी जिंदगी जी रहे है। धरातल पर चल कर व्यवहारिकता को क्यों नहीं अपनाते। निरंतर सजा मिल रही फिर भी जीवन को जानना नहीं चाहते।

"खुद में ही मशगूल हुए जाने कौनसी मंजिल पाने को
खुशियां चौखट पे इंतजार करती रही पास आने को
इंतजाम में बीता वक़्त, तलाशती आँखे अब सुकून को
इतने भी लाचार नहीं, इंसान हो, छोड़ो इस जूनून को।"

Jun 3, 2016

रूठे सनम से फरियाद (Complaining with an annoyed lover)


 
अरसे से बुला रहा हूँ तो जवाब भी नहीं देते
जरुरत चीज बड़ी, कहते है उड़ कर आ जाओ।

में गाफिल कहाँ था, वक़्त कमजोर था मेरा
जिसने सताया था, वो तो दोस्त था मेरा।

तेरी कतारों में कोई मेरा हमशक्ल रहा होगा
में तो दिल में था तेरे, कमबख्त खामोशियां पाले।

बोलते थे बहुत, कभी ध्यान नहीं गया
अब चुप क्या हुए, कयामत आ गयी।

सलीक़े से मेरी सब खबर रखते हो
अब क्या क़त्ल करने का इरादा है।

रूबरू होकर नजर भी नहीं मिलाते
लोग देखते है, चलो कुछ गुफ्तगू कर ले।

फासले जमीं के नहीँ थे
जहाँ थे तुम, हम भी तो वहीँ थे।

मेरी अक्स पे नजर डाले, गुजर जाते लोग
मील का पत्थर जो ठहरा तेरी राहों का।

पाक रिश्तों की पनाहों में कुछ गलतियां भी हुई होगी
वर्ना मोहब्बतें यूँ आसानी से बदनाम नहीं होती।

रूठे थे दिन में, रातों को मना लेते
इतने पत्थरदिल सनम हम नहीं थे।

अच्छा हुआ कि तन्हाइयों ने साथ निभाया
काश उनको आप सौतन तो मान लेते।

कम हो गया होगा नूर, ज़मीर तो जिन्दा है
चाहो तो बदस्तूर आजमा कर देख लो।

अल्फाझ तो मेरे हलक में अटके थे
लोग कहते रहे, पगला गया ये सख़्श।

गिले शिकवे तो अपने दरम्यां थे अशोक
नादान, नुरे इश्क का कसूर क्या था।


May 29, 2016

Perceiving The Existence of Soul


Our body has some special part and possess forces which are constantly keeping a watch on anything we act or think. In India many call it a third eye. Some people may agree or some may not but it is really interesting that there is a big hard disk or server existing within our soul which is in our body.

The soul is eternal so the server or hard disk too should be working inside it. The server is having far bigger capacity of memory to store huge data and it processes these sets of data when there is a conducive environment. This is a journey of knowing the unknown within us. 

We behave as per our basic nature, perceptions and beliefs but deep within ourselves there is a huge system which works constantly. We call it by different names like Destiny, Karma and so on to the extent we develop understanding about it. I am not talking about religion here rather striving for a constructive thought process about our inner self. Soul-searching and religion both are totally different though their meaning is known to be synonymous in common parlance. Generally religion is evolved by others and then followed, while soul-searching is always an individual approach where in it is not necessary to follow a defined set of rules, eventually it brings different experience too. So mute question comes up, how do we know about this inner system and benefit from it and start a nice journey towards complete self-realization if we really aspire for it.

Some steps we can explore are explained here:

Observation : Observing is an art. how to observe, what to observe and how to remain vigilant while observing, all these questions are very important and one has to find answers on his own by practicing observance individually. Some of the area may be like observing sunrise, inner feelings, behavior of self and others, flowing water, watching stars or moon at midnight, breathing, emotions and so on.
   
Thought process : It is interesting to note that once we learn observing, our thought process start getting direction. We get closer to more consciousness-centric reality. In straight words, we start having grip on our thought-process.

Meditation : There is enough literature, write-ups available everywhere but just to simplify it I would like to add that meditation can not be pursued, instead it should happen naturally. It does not always require forest or some lonely place, It is within you and let it reveal itself by being what you are in real. Our calmness is our meditation, Our concentration is our meditation and in fact our happiness is true meditation. I am not playing with words, its really true that when you are happy, that state of mind is really a true meditation.

Change : You might have heard that change is sure, inevitable and everything changes and so on. Yes I too agree with these facts but my point is think about "desired or required change". Life is so small so we can not remain aloof and let every change take place as it happens. We as an eternal soul can make changes.When meditation start happening, changes do take place positively. It is not by compulsion, it is spontaneous. Yes each of us will have a different story but meditation helps a lot.

Consistency : All of the above, if not followed or attained on sustained basis it looses consistency and thus its effectiveness eventually. Each time you meditate or observe you will enjoy to know that  different avenues are opening up. You will be able to find your answers on your own and its a great fun too.

Attaining Purity : Purity may have different meaning but here it is referred for state of our soul. When our soul-searching starts it heals, it brings changes, it liberates, it affects our health positively, it increases our intuition, penance and the more we advance, more we are near to purity and transformation. All of sudden you can not talk about purity, it has to be attained by following the other points we discussed above.

Last but not least, if we really follow and feel all these the journey of self-realization starts......
Ashok Madrecha

May 6, 2016

बस करो अब... (Enough is Enough)



बस करो अब ये दिखावा
खुद जिंदगी तंग होने लगी है।
कभी तो सुन लो अंतर की पुकार
देखो वो तार तार होने लगी है।
क्या साबित करोगे,और किसे पड़ी है तुम्हारी
अहंकार की जमीन भी हिलने लगी है।
मीठे बोल कर जहर घोलते रहे चुपचाप
भरोसे की नीवं हिलने लगी है।
क्या बचाओगे, क्या संभालोगे
पानी में भी तो आग लगने लगी है।
जिनके जज्बातों से खेलते रहे ताजिंदगी
अब उनकी आँहें बहुत सताने लगी है।
आजकल जेबों में कुछ रुकता नहीं
उनमे भी पैबंद लगने लगी है।
आडम्बर की आड़ में खुद को गिराते गए
नतीजा देखो, दुनियां तुम्हे गिराने लगी है।
सच को झूठ कितना बनाओगे
समय की मार तो पड़ने लगी है।
अपनी सांसो पे गरूर करते हो
वो देखो धीमी हो गयी, शायद थमने लगी है।

(Hindi poem on living life with double standard)

Apr 30, 2016

उम्मीदों का जहां


सन्नाटों में खुद के सायों से बाते करते हो
कहते कि अकेले नही, पर आहें भरते हो।
अरसा हो गया हमसे बात करके
अब ये मत कहना कि रोये नहीं जी भर के।
खुद को सजा देने की आदत तो पुरानी है
इश्क और इम्तहाँ की लंबी जो कहानी है।
कुछ बाँट लेते दर्द, ह्रदय तो हल्का हो जाता
गैर सही हम, अश्कों को अवकाश मिल जाता।
हर जगह सबको क़द्रदान कहाँ मिलते है
समय और संयोग से ही सुंदर फूल खिलते हैे।
पोंछ दो आँसू, उम्मीदों पर संसार चलता है
स्वीकार करो, आशाओं में प्यार पलता है।
कितनी देर हुई ये गिनती भी जरुरी नहीं
खुद को रोकना कोई मजबूरी नहीं।
कौनसे वक्त का इंतजार कर रहे हो
या किसी अनहोनी से डर रहे हो।
विश्वास करो, थाम लो मन की पतवार को
करीब है मंजिल, दस्तक तो दो द्वार को।

Apr 24, 2016

Start with vision



Life paves different ways to live. We constantly act and react, sometimes necessary and sometimes unnecessarily. It all depends on our thought process and the vision we develop over a long period. Vision once set in our mind affects our entire life. Recently somebody asked me, what is the best gift from parents to their children, I simply replied " If you can give them the vision of right kind, it will the best gift for them. 

Vision defines your goal, ambition, destination, lifestyle, relationship, wealth, luck, friends, networking, carrier, health, success, happiness and whatnot. We find people struggling for wealth, good perks, real brothers fighting for a piece of land, Industrialists fighting for corporate takeovers, Political leaders seeking votes with all unfair means, all these speak about their kind of vision they possess. You may notice, apparently looking powerful, they all are in a state of unsecured feeling and their vision is obstructed by their own thought process. A visionary person always believes in creating and adding value. He would not waste time in dividing people. 

You may find there are many people who are wealthy but happiness is with people with vision and positive mindset only. If our present is not as per our expectation who bars us to improve and evolve a broad vision which should attract good luck to us. Believe me, if you practice such kind of thinking with having a feeling of wellness for all, you will constantly attract far better time in your life. Yes, it's your turn now.

Mar 24, 2016

पैसा है पर सुख नहीं तो पढ़े...


आप सभी ने कहीं न कहीं यह जरूर देखा होगा, सुना होगा या महसुस किया होगा कि इस संसार में कई परिवार या व्यक्ति ऐसे है जिनके पास संपत्ति है और आमदनी  की अच्छी व्यवस्था है फिर भी ख़ुशी नहीं। यह सचमुच एक बड़ी विडम्बना है परंतु सत्य है।
कुछ उदाहरण पर चर्चा करते है :
एक व्यक्ति के पास पैसा बहुत है परन्तु उसे शिकायत है कि लोग उसे सम्मान नहीं देते।
एक महाशय अपने सभी रिश्तदारों से नाराज चल रहे है।
एक परिवार पैसे के साथ सामाजिक और राजनैतिक रूप से काफी प्रभावशाली है फिर भी वहाँ खुशियां दिखाई नहीं देती।
एक परिवार में बच्चे सबका अनादर करते है।
कहीँ पर स्त्रियों पर अत्याचार की स्थिती है।
किसी जगह पे रोगों ने अपना अड्डा जमा लिया है।

आखिर क्या कारण है कि इतना सब होते हुए भी जीवन में रिक्तता का निर्माण हो जाता है। मनुष्य इतना अकेला हो जाता है। इन सब विडंबनाओं के पीछे कुछ खास कारण है, आओ हम इस पर गौर करे।

कारण :

1. सिर्फ खुद के बारे में सोचना या करना।
2. रिश्तों के बजाय सामग्री में सुख खोजना।
3. अनचाही व्यस्तता ।
4. दोहरे मापदंडो वाली जिंदगी जीना।
5. सिर्फ इकठ्ठा करने की प्रवृत्ति  ।
6. अव्यवहारिक अपेक्षाओं में जीना।
7. अपने अहम् का पोषण करने की प्रवृत्ति।
8. भ्रम या सबको खुश करने की आदत।
9. दूसरों का श्रेय खुद लेने की आदत।
10. भविष्य को हमेशा अच्छा मानकर चलना।
11. रचनात्मक बातों के बजाय सिर्फ वाद विवाद करना।
12. मानवीय मूल्यों का अनादर करना।
13. समय के साथ परिवर्तन को नहीं अपनाना।
14. खान-पान की मर्यादाओं का सतत उलंघन।
15. परिवार या रिश्तेदारों में मेल-मुलाकातों का अभाव।

उपरोक्त सभी बाते कई लोगों का व्यवहारिक अध्ययन करने के उपरान्त लिखी गयी है। यहां पर ऐसे भी लोग उपलब्ध है जिन्होंने सम्पूर्ण जीवन में किसी की एक बार भी मदद करने का आनंद नहीं लिया। हर व्यक्ति अपने आप में दूसरे से भिन्न होता है फिर भी यदि इन बातो को हम थोडा भी जीवन में उतार सके तो काफी परेशानियों से बच सकते है और जीवन को खुशहाल बना सकते है।
..अशोक मादरेचा

प्रयास (Efforts)

जब सब कुछ रुका हुआ हो तुम पहल करना निसंकोच, प्रयास करके खुद को सफल करना। ये मोड़ जिंदगी में तुम्हें स्थापित करेंगे और, संभव है कि तुम देव तु...