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Mar 21, 2021

बदलता विश्व, बदलते समीकरण (Changing World, Changing Equations)


उद्वेलित विश्व में फिर शीत युद्ध की आहट
बदलते शक्ति संतुलन, और नई चौधराहट।

मुट्ठी भर लोगों में बट गया संसार
बाकी सब आगे पीछे करते तकरार।

रोज दोस्त बदलते है आजकल
सब कुटिल राजनीति के फल।

महत्वाकांक्षाएं नए आकार में
सिकुड़ती न्याय व्यवस्था प्रतिकार में।

नेतृत्व विश्व में या तो मजबूर है
या फिर सत्य से ही दूर है।

व्यक्ति पालता आशाएं
कानून बदलता परिभाषाएं।

संगठन स्वयं शोषण का जरिया हो गए
झरने शेखी बघारते खुद ही दरिया हो गए।

भूमिकाएं भागती है जिम्मेदारी से
छूटती उम्मीदें अब वफादारी से।

कुछ बारूद बढ़ा कर आंख दिखाते
देशों के समूह द्वेष बढ़ाते।

निरीह मानवता पूरी मौन है
अब आवाज उठाने वाला भी कौन है।

#WorldPoetryDay2021 #UNO

- Ashok Madrecha

Aug 10, 2019

Beauty (सुंदरता)


अनंत की व्यापकता
अंतर के निर्मल भाव
निशब्द सा आकाश
सूर्य का प्रकाश
धरती का धैर्य
अनुपम सौंदर्य
कुसुम की महक
अगाध ऐश्वर्य
और प्रेम का मिलन
इतना सब कुछ
फिर भी निरवता
और समाधि में स्थित प्रज्ञ
कोई देवी हो या मायावी
प्रश्न हो या उत्तर
बिन लहरों का सागर
सतरंगी इंद्रधनुषी छवि
मस्ती या मादकता
संगीत की मधुरता
अपरिमित ऊष्मा
शायद कोई करिश्मा
प्रणय के बोध से कहीं दूर
इतना स्वस्थ और खुश
अपूर्व ओजस से युक्त
पर अप्सरा भी तो नहीं हो
इरादा क्या है जो
वक्त को थामे हुए
मन्द मन्द मुस्करा रही हो
 जो भी हो तुम सही हो, सही हो।

Oct 30, 2018

Closeness अपनापन


उचक के नींद खुली
कुछ आवाज़ आई, शायद ये
तेरे पास होने का अहसास था
बीते हुए पल तैरने लगे
रात के सन्नाटों में
तुम्ही दिखते लगे उन आहटों में।
एक मीठा सा अनुभव
तेरी यादों का इस कदर
साथ होने का,
कभी तेरे हाथो ने
मेरे सर को सहलाया था
और में सो गया था निश्चिंत सा
फिर तेरे आसुओं की
दो बूंदों का अचानक गिरना
मेरा हड़बड़ा कर उठना
और तुमसे मिलकर
जी भर के रोना
आज फिर याद आता है।
बहुत ज्यादा दौड़ लिया
कितना वक्त पीछे छोड़ दिया
आज फिर से तेरा हाथ थामे
खिड़कियों से आती मद्धिम रोशनी में
चांद से बतियाने का मन करता है
मौन की भाषा में बहुत कुछ
कहने को मन करता है
इस रात की निरवता साक्षी है
कि इन रिश्तों की महक गहरी है
है कुछ खास जो मेरी नींद उचटती है
मुझे जगाकर ये कुछ कहती है।

Oct 7, 2018

आशा (Hope)



आशा जीवन है, और निराशा मृत्यु
पल प्रति पल इन दोनों के बीच
हम झूलते निरंतर क्यूं
कभी आशा का पलड़ा भारी
कभी निराशा होती भारी।
रोज नई चुनौतियों से मुकाबला
शायद कुदरत की व्यवस्था है ताकि
मनुष्य की जीवन यात्रा नीरस ना हो।
हर रोज कुछ ना कुछ नया होता है
अनहोनी होने से ज्यादा तो उसका डर होता है।
प्रश्न है कि हम कितना सचमुच जीते है
जीना और समय व्यतीत करना
इन दोनों के फर्क को समझना
है तो बहुत जरूरी
पर कथित व्यस्तता सबके जीवन की
स्वीकृत त्रासदी बन चुकी है
और ये त्रासदी अब तो आदत बन चुकी है।
बिगड़ा नहीं कुछ भी
उम्मीद से हर काम बनता है
आओ जीवन मूल्यों को गतिमान करे
अंतर से प्रेम का आवाहन करे
सर्व हित में कुछ तो सृजन करे
अहंकार का विसर्जन करे
समझो कि बहुत प्रबल ये मन है
आशा तो अमर धन है
आशा तो अमर धन है।


Hopes and despair are part of life. The above Hindi poem states that we must take things in proper perspective and remain positive in life. You may also like my other poem on Journey

......... अशोक मादरेचा

Feb 11, 2018

दोस्त को पुकार (calling the friend)




सपनों का पीछा करता मनुज
गंतव्य को भूल बैठा

जब मंजिलें ना मिली
तो जहां रुका उसे ही मंजिल मान बैठा

जब कुछ खास हासिल ना हुआ तो
कुछ अखबारों की सुर्खियों में आकर
जीवन को धन्य मान बैठा...।

खैर जो हुआ सो हुआ
पर इसको आदत सी बना ली

अब तो नित्य ही कृत्रिम जिंदगी जी रहा
घूंट जहर के चुपचाप पी रहा

वो बतियाने को दोस्त भी ना साथ रहे
कुछ कहे तो भला किसको कहे....।

इतना आगे आ गए
कितने पीछे छूट गए

नदियों में पानी बहुत बहा
किनारों ने कितना सहा

चले थे कहां , मुकाम कुछ और मिले
भूलकर सब शिकवे और गिले
आ मेरे दोस्त हम फिर मिले
आ मेरे दोस्त हम फिर मिले....।

Jan 23, 2018

मौन (Silence)



मेरे प्रश्नों से ज्यादा उलझे हुए थे उत्तर
सोचता हूं बोलू या चुप्पी साध लू। 

सत्य इतना जटिल भी होता है
पहले नही था अहसास कभी। 


हतप्रभ सी स्थिति में
कुछ भी सूझता नहीं था। 

बरबस सब होता गया
सध सी गई मानो भीड़ में निरवता
और किसी दुर्जन में भी समता। 

समय को मेरे शब्दों की ज़रूरत थी
और मज़बूरी को मौन की। 

किसे अपना लू किसे नहीं
असमंजस हावी था विवेक पर
ये सब ऐसा था जैसे प्रकाश में
होता अंधेरे का अनुभव। 

ठिठकती न्याय व्यवस्था
सिमटते विकल्प और समाधान
किंकर्तव्यविमूढ़ राजनीति आज
हर कोई जवाब की अपेक्षा में। 

मै खड़ा कर्तव्य पथ के दौराहों पर
आहटें थी कुछ पदचापों की
सत्य मौन साधे एकांत में
और असत्य अकड़ रहा था।

----- अशोक मादरेचा

Nov 23, 2017

कविता (Hindi Poem)



मुझे चुनोतियाँ तो हर रोज मिलती है
मेरी कविता, सिर्फ सत्य जो कहती है।

ये कभी श्रंगार तो कभी वीर रस कहती है
निर्भय हो सत्ता के गलियारों से भी गुजरती है।

इस पर हर तूफान भी गुजर जाता
आकाश भी सीमित नही कर पाता।

रोकने की हर कोशिश इसे बृहत्तर कर देती
सूखते शब्दों के झरनों को फिर भर देती।

ये कविताएँ भूगोल नही मानती
स्वछंद ये, खुद के अस्तित्व को नही जानती।

बरबस इनका बनते जाना
शब्दों का चितवन में आना जाना।

ये तो बस शुरू होती है
नही कभी ये अंतिम होती है।

कितनों ने समझा इसे और आनंद लिया
बेशक कुछ बिरलों ने जी भर के इसे जिया।

बस इसे एक प्रेम ही नियंत्रित करता है
अंतर्मुखी बनाकर अभिमंत्रित करता है।

जब प्रेम से अध्यात्म की ओर अग्रसर होती है
कालजयी बन अक्सर वो कविता अमर होती है। 

Oct 22, 2017

Near to Truth सत्य के करीब



A Hindi Poem on a situation of an experienced person guiding his kin about truth of life ...




                                                     मेरी लघुता को मजबूरी मत समझो
                                                   आप जीतते रहो, उसकी व्यवस्था है ये।

                                                  हम तो उस दिन जीतेंगे जब लोग कहेंगे
                                                     आप जीत गए हो अपने प्रयत्नों से।

                                                      रास्तों के कंकरों से दोस्ती है मेरी
                                                      ताकि वो कभी चुभे नही आपको।

                                                      गति तेज है, जरा सम्भलकर चलना
                                                      अभी तो दूर तक जाना है आपको।

                                                      मेरी कलम पर एतराज मत करो
                                                    इतिहास लिखना तो बाकी है अभी।

                                                   शंका के बादलों में छुप के मत रहो
                                                    जो कहना है, दिल खोल कर कहो।

                                              फैसला तो होठों तक आ चुका हाकिम के
                                           मजबूर वो आज तक, गवाहों के इंतजार में है।

                                              हम चलते है जमीन पे आपका ख्याल कर
                                               वरना उड़ना तो हमें भी खूब आता है।

                                               विश्वास की बुनियाद पर घर बनते है
                                             अन्यथा महलों को भी कौन पूछता है।

                                        मेरे आंगन के फूलों में कोई फूल ऐसा महके
                                       लोग बुलाए उस फूल को, विश्व धरोहर कहके।

                                             विचार लो और कर्तत्व को महत्व दो
                                            अविचल बनो ओर सत्य को सत्व दो।

                                      ऊंच नीच के फेर में आज भी यथार्थ का स्थान है
                               झूठ कितना भी पाल लो, सत्य ही महान है, सत्य ही महान है।

May 29, 2017

संदेश (Message)


बुने हुए सपनों पे कभी मत इतराना
बीच रास्तों में कभी मत घबराना।

इनको सच होने में वक़्त लगता है
आरम्भ में सब कुछ सख्त लगता है।

धीरज का हाथ थामे आगे बढ़ते रहना
परिश्रम और प्रयास, बस करते रहना।

बहुत थकान आएगी निराश मत होना
कभी हार भी जाओ तो हताश मत होना।

कांटो को देख कभी पीछे मत हट जाना
जहां हो मुश्किलें पहले वहीं डट जाना।

हर चुनौती का साहस से उत्तर देना
आंखों में आंखे डाल प्रत्योत्तर देना।

तपता सूरज, कहीं बादल, कहीं बरसाते
इसमें नया नही कुछ कहीं दिन, कही राते।

अपनी रप्तार और दिशा का ध्यान रखना
जोश में होश ना खोना इसका भान रखना।

याद रहे रणनीति में फेरबदल बहुत कुछ करना
पर ध्यान रहे भरोसा कब कितना किस पर करना।

                                                  मेरा पुनःआग्रह है तुम्हें, नीति और नियत से चलना
                                                   फिर जिंदगी में दूर नही होगा मंजिल से मिलना।।
                                                      
                                                                                           ----- अशोक मादरेचा

Jul 4, 2016

टूटे पत्ते का दर्द (Pain of Broken Leaf)










वो कल कोपलों के बीच सबका प्यारा था
हरित चमक लिए, अनूठा वो सबसे न्यारा था।
ओस की बुँदे भी आकर उसपे ठहरती थी
हर चिड़िया उसका स्पर्श पाने को रूकती थी।
वो हरा भरा, उस पेड़ की डाल का गौरव था
उसकी दुनियाँ आबाद थी, सारा वैभव था।


समय की यात्रा में
वो रंग खोने लगा
हरा था , बाद में पीला पीला होने लगा।
एक दिन वो सूख गया और रोने लगा
जगा हुआ उसका संसार सोने लगा।
किसी ने नहीं सुनी उसकी, हवा का झोंका आया
छिटक गया वो डाल से, बोलो कुछ समझ में आया।
हर कोई दोहराता ये, बस वक़्त अलग होता है
फिर भी इंसान में गरूर कितना होता है।
आपाधापी में जिंदगी खूब मचलती, तड़पती
चेहरों पे नकाब डालने से उम्र नहीं बदलती।
कुछ अच्छा कर लेने की ठान लो
मनाओ मन को या खुद ही मान लो।

May 6, 2016

बस करो अब... (Enough is Enough)



बस करो अब ये दिखावा
खुद जिंदगी तंग होने लगी है।
कभी तो सुन लो अंतर की पुकार
देखो वो तार तार होने लगी है।
क्या साबित करोगे,और किसे पड़ी है तुम्हारी
अहंकार की जमीन भी हिलने लगी है।
मीठे बोल कर जहर घोलते रहे चुपचाप
भरोसे की नीवं हिलने लगी है।
क्या बचाओगे, क्या संभालोगे
पानी में भी तो आग लगने लगी है।
जिनके जज्बातों से खेलते रहे ताजिंदगी
अब उनकी आँहें बहुत सताने लगी है।
आजकल जेबों में कुछ रुकता नहीं
उनमे भी पैबंद लगने लगी है।
आडम्बर की आड़ में खुद को गिराते गए
नतीजा देखो, दुनियां तुम्हे गिराने लगी है।
सच को झूठ कितना बनाओगे
समय की मार तो पड़ने लगी है।
अपनी सांसो पे गरूर करते हो
वो देखो धीमी हो गयी, शायद थमने लगी है।

(Hindi poem on living life with double standard)

Apr 30, 2016

उम्मीदों का जहां


सन्नाटों में खुद के सायों से बाते करते हो
कहते कि अकेले नही, पर आहें भरते हो।
अरसा हो गया हमसे बात करके
अब ये मत कहना कि रोये नहीं जी भर के।
खुद को सजा देने की आदत तो पुरानी है
इश्क और इम्तहाँ की लंबी जो कहानी है।
कुछ बाँट लेते दर्द, ह्रदय तो हल्का हो जाता
गैर सही हम, अश्कों को अवकाश मिल जाता।
हर जगह सबको क़द्रदान कहाँ मिलते है
समय और संयोग से ही सुंदर फूल खिलते हैे।
पोंछ दो आँसू, उम्मीदों पर संसार चलता है
स्वीकार करो, आशाओं में प्यार पलता है।
कितनी देर हुई ये गिनती भी जरुरी नहीं
खुद को रोकना कोई मजबूरी नहीं।
कौनसे वक्त का इंतजार कर रहे हो
या किसी अनहोनी से डर रहे हो।
विश्वास करो, थाम लो मन की पतवार को
करीब है मंजिल, दस्तक तो दो द्वार को।

Oct 28, 2015

तेरा अहसास



वो कनखियों से नजर मिलाते है
अपने तुफानों से पर्वत हिलाते है।
बहुत सादगी से रहते है
आँखों से सब कुछ कहते है।
बेशक शरारत और मस्ती का करिश्मा है
अँधेरे में जलती हुई एक शमां है।
रूबरू होके भी अक्श छुपाने का अंदाज
बताओं भला इस खूबसूरती का राज।
लबों से कुछ बोलते तो शायद तराना बन जाता
इन लम्हों के साथ इकरार का बहाना बन जाता।
हवाओं में खुशबु सी समाई है
मुद्दत से वो मेरे शहर में आई है। 
उनके कदमो की आहट करीब आ रही
देखो बहारे मस्ती के गीत गा रही।
लौटा यौवन फूलों का, चांदनी आवारा हो चली
निश्चित है गौरी आज खूब सज धज के चली।
मिलने की आस अधूरी थी अब तक
कितना तड़पाओगे, और कब तक।
वादा करो कि फिर नहीं जाओगे
रूबरू रहके, ताजिंदगी साथ निभाओगे।

Oct 12, 2015

हकीकत (Truth)


हमें रोकने की हर कोशिश कर रहे वो
फूटे गुब्बारों में हवा भर रहे वो।
हर महफ़िल में उनके इंतजाम हो गए
हमारी बदनामी के किस्से आम हो गए।
कुछ मेरे अपने उनके साथ हो लिये
कुछ उनके अपने मेरे साथ हो लिए।
रास्तों में काँटे बिछाना उनका सुकून था
हमें भी मंजिल पाने का बड़ा जूनून था।
हर मुश्किल एक नया पाठ पढ़ाती थी
अनजानी सी प्रेरणा आगे बढाती थी।
उस यात्रा का हर मोड़ और पड़ाव याद है
वो रूकावटो के दौर भी बखूबी याद है।
कोई गिला शिकवा नहीं दौरे मोहब्बत में
सीखा समझा बहुत कुछ उनकी सोहबत में।
कद्र और कदरदान अब कहाँ नजर आते है
दो प्रेमी भी अब तो मिलने की रस्म निभाते है।
___ अशोक मादरेचा

Aug 14, 2015

प्रयास ( Effort )



प्रयास की दिशा सही हो
भाव अपने वही हो।
निरंतर बस लगे रहो
कर्म सलीके से करते रहो।
लगन से हर मुकाम मिलता है
वक्त पे ही सुन्दर फूल खिलता है।
धैर्य की परीक्षा तो होगी
काम की समीक्षा भी होगी।
अपनी आशा और जोश साथ रखे
विश्वास रखे और खुद को भी परखे।
हर ऊँच नीच को अपना लेना
आत्म विश्वास को परम मित्र बना लेना।
भीड़ की सोच में उलझ मत जाना
तुम खास हो अपनी मंजिल खुद पाना।
बिल्कुल मत घबराना
प्रयासों के घनत्व को बढ़ाना।
दुनियाँ भी आसपास घूमेगी
सफलता तुंम्हारे कदम चूमेगी।
.......अशोक मादरेचा

May 28, 2015

आत्मविश्वास (Self Confidence)



अंतर से उठ रही अविराम तड़पती आवाज
ओ प्रिय तन्हाई पास आओ आज  .…।
तमन्नायें दबती रही, निराशाएं घर करती रही।
झूठे दिलासों के बीच, अमर आशाएं मरती रही .…।
घने कोहरों के बीच, जंगलो में टहलता रहा
कृतत्व और पुरुषार्थ, करने को मचलता रहा .…।
अब सन्नाटों में समय से, कुछ प्रश्न करने की अभिलाषा है
उत्तर मिले या ना मिले, बरसो पुरानी जिज्ञासा है .…।
कहूँगा समय को ,सत्य साथ लेकर आना
ना चलेगा कोई बहाना, मुझे तो बस उत्तर पाना .…।
उलझनों से निकलने की ठान ली है
वक़्त की नब्ज जो पहचान ली है .…।
अब अवरोध सभी हट जायेंगे
गम के बादल छट जायेंगे .…।
विसंगतियों को चुनोती देता हूँ
पूर्ण विश्वास से संकल्प लेता हूँ .…।
समता को अपनाकर,अंतरिक्ष से आगे तक इरादा है
आत्मबिश्वास के आगे ये लक्ष्य कौनसा ज्यादा है .…।
अब तूफ़ान मुझे रोक नहीं पाएंगे
राहों में कोई टोक नहीं पाएंगे .…।
रुक गए यो बहुत खलेगा
घबराने से काम नहीं चलेगा .…।
सब दिशाओं को निर्देशित कर दूंगा
मुरझाए दिलों में नयी उर्झा भर दूंगा .…।
पल प्रति पल प्रयत्न करूँगा
मै विजय श्री का वरण करूँगा .…।
मै विजय श्री का वरण करूँगा .…।

…अशोक मादरेचा

Apr 26, 2015

आशा (Hopes)



समर्पण  के सेतु से परमात्म तक की यात्रा
आत्मा के हेतु से बंधे हुए हर असहज को
सहज कर देने की ऊर्जा और दिशाओं को
सीमित कर दे ऐसी कृपा की मात्रा। 
हर पल के अस्तित्व को नव आयाम देती हुई
स्वयं को पहचानने की लालसा का अनुभव
होना तो शुरुआत है पर यही मंजिलो तक का
सफर करा देती है विश्राम भी देती हुई।
इरादों का बुलंद होना, और सतत परिश्रम का पालन
कुछ दूर नहीं होता फिर, मनुष्य के लिए
क्या करना है, क्यों करना है, कब करना है
इस उलझन से निकले तो, सफलता करेगी गुंजन।
पुरुषार्थ और आडम्बर का फर्क स्पष्ट रहे हरदम
व्यर्थ में जाया ना करे समय और साधनों को
प्रमाद से दूर रहकर, आनंद के भावों में विचरे बस
इतनी सी बातें है, फिर क्यों कष्ट सहे हम।

-- अशोक मादरेचा

Feb 27, 2015

समाज की सच्चाई


जाने अनजाने हम क्यूँ अमरता का आभास करते है
खूब करते दिखावा और कितनों का परिहास करते है।
हर बात में अपने अहम् का पालन अब सहज हो चला
कुछ करने की जल्दी में रिश्तों की चिंता क्यूँ हो भला।
अर्थ के बुखार में समय सीमित लगने लगा है
क्या बुढ़ापा क्या जवानी, बचपन भी रोने लगा है।
हर मनुज दोहरी जिंदगी जीने को मजबूर हुआ
भाग रहा इधर उधर स्वयं से कितना दूर हुआ।
अपनों के बीच बैठ बतियाना अब कहा दिखता है
हर चीज के होते मोलभाव , रोज जमीर बिकता है।
बटोरतें सुर्खियां अख़बारों में विज्ञापनों का दौर चल रहा है
सिर्फ पदों का बंटवारा , देखो कैसे समाज बदल रहा है।
हुए कब्जे पानी और जमीनों पे हवाएं अब मुश्किलो में है
धर्म राजनीति का शिकार है न मालूम और क्या दिलो में हे।
ओरो की छोड़ो परिवारों में राजनीति हावी होने लगी
उलझनों के दावपेच में करुणा मैत्री तो खोने लगी।
जरूरतों के पहाड़ के नीचे दबा इंसान कितना अकेला है
साफ है मकान उसका पर अंदर से कितना मैला है।
अहसास तो होता है पर स्वीकार नहीं करते
नियति कहके उसको सब तिल तिल मरते।
हर ख़ुशी कल पर टाल कर वर्तमान की बलि चढ़ा दी
जो मिला उसमे सबर नहीं, नहीं मिला वहाँ नजर घड़ा दी।
सरलता छोड़कर उलझनों को अपनाया
खुद के बजाय ओरों को सुधारने में वक़्त गवांया।
नेता की पदवी मिली समाज में तो मन बहुत इठलाया
हर वक़्त जुगाड़ में रहे कि कौन क्या लाया।
शिकायत है इनको आजकल नींद नहीं आती
मन अशांत है खुशियां करीब नहीं आती।
एक भी ऐसी रात नहीं ये कोई अचरज की बात नहीं
वो भीड़ में अलग दीखते होंगे पर कोई उनके साथ नहीं।
मै सच कहता हूँ इस महफ़िल में
बुरा मत लगाना कोई भी दिल में।
यहाँ जीवन तमाशा बन गया और सब चुपचाप है
अब ऐसा मत कहना कि यहाँ बोलना भी पाप है।
वक़्त रहते हम्ही को बदलाव लाने होंगे
टूटते परिवार और रिश्तों को बचाने होंगे।
गौरवशाली है संस्कार हमारे भावी पीढ़ी को ये समझने दो
अवसर दो अशोक अब उनको आगे बढ़ने दो।

Efforts कोशिश

बेशकीमती वक्त को मत जाया कर हासिल होगी मंजिल बस तू कोशिश तो कर ...। निकल बाहर हर भ्रम से रोज घूमता इधर उधर थोड़ा संभल और चलने की बस तू कोशिश...