Showing posts with label Hindi Poem. Show all posts
Showing posts with label Hindi Poem. Show all posts

Jul 15, 2018

Nature कुदरत



दुआओं की इमारत में रहता हूँ
आपने पूछा इसलिए कहता हूँ
नायाब इंसानियत की मजबूत दीवारे
प्यार की खुशबू, मौजों के फव्वारे
शांति के सागर में चांदनी की छटा
फैले आकाश में बादलों की घटा
चहुँ ओर फैली कुदरत की सुंदरता
गुलशन में उमड़ती फूलों की मादकता
भोर की अंगड़ाई, शीतल पवन का चलना
पनघट की ओर पनिहारिनों का निकलना
सिंदूरी आकाश में सूरज का आना
चिड़ियों के झुंड का खूब चहचहाना
नवकोपलों में व्याप्त होता परिपूर्ण जीवन
अभिव्यक्ति में असमर्थ गदगद होता मन
कलकल करते झरनों के पानी पर पड़ता प्रकाश
प्रकृति की हर रचना देखो होती कितनी खास
सब ये सोचकर मन को त्राण मिलता है
वर्षा से जैसे मरुधरा को प्राण मिलता है
नमन है प्रकृति को बारम्बार यही कहता हूं
बस दुआओं की इमारत में रहता हूं ।।

Jun 20, 2018

समझदारी (Intelligence)



Hindi poem on reality of present life. it describes about our illusion, selfishness, ego, power, relationship and complexity of life



किसमें खुशी खोजते कुछ भी भान नहीं
अच्छे बुरे का कुछ ध्यान नहीं
आखिर समझदार जो हो गए है।

हर जगह खुदगर्जी का वर्तन
पसंद नहीं आते अच्छे परिवर्तन
आखिर समझदार जो हो गए है।

सिर्फ लेने में भरोसा, देने से कोसो दूर
तनाव और दुख में भी हंसने को मजबूर
आखिर समझदार जो हो गए है।

जमीन छोड़ दी, कुर्सियों के पीछे पड़ गए
चमक दमक में बचपन के दोस्त भूल गए
आखिर समझदार जो हो गए है।

सेहतमंद खाना छोड़ पिज्जों में उलझ गए
खुलकर हंसना छोड़ हम बहुत गम्भीर हो गए
आखिर समझदार जो हो गए है।

सहजता को मूर्खता कहते है
कुछ किताबें चाटकर गरुर पालते है
आखिर समझदार जो हो गए है।

अपनों के बीच भी परायों सा जीवन
हर जगह खुदगर्जी का वर्तन
आखिर समझदार जो हो गए है।

नकारते सच को मुखौटे पहनकर
अनसुना कर देते सच को सुनकर
आखिर समझदार जो हो गए है।

लगे है जोड़ने को पता नहीं कितना जोड़ेंगे
हम रिश्ते तोड़ देंगे पर जिद नहीं छोड़ेंगे
आखिर समझदार जो हो गए है।

-- अशोक मादरेचा

Jun 4, 2018

अनबोले संदेश (Unspoken Message)


बहाने को अश्क शेष नहीं थे
पथराए से दोनों नयन थे
इंतजार के भाव थे
बेशक दिल में कहीं तो घाव थे।

वो नियति के मारे
शून्य को घूरते थे
आकाश भरा अकेलापन
शायद किसी को ढूंढते थे।

जैसे कई तूफान गुजरे उन पर से
बिखरे केसूओं से झांकते थे
गुजरते राहगीर उस तरफ
कुछ अजीब से आंकते थे।

होठों की कंपकपाहट के बीच
शब्द आकर तो लेते थे
मैं करीब गया, पर समझ नहीं पाया
अजनबी  "अशोक " को वो कुछ तो कहते थे।

Apr 28, 2018

पीछा करता सत्य (Chasing Truth)


जिन्हें समय दिया जिंदगी भर
वो कहते है उन्हें फुरसत नहीं ।

व्यस्त है या बनाते बहाने
जरूर कुछ, गलतियां तो हुई ।

नए मित्रों के संग, नए नए प्रसंग
परिस्थितियां आज, बदल गई ।

जवानी है, ऊर्जा भी चरम पर
दृष्टि शायद कुछ बदल गई ।

अहसास कराने, कुछ भी कर लो
नावों की पतवारें तो फट गई ।

सब कुछ गतिमान अमर्यादित सा
शर्मो हया भी तो मिट गई ।

कुछ अनहोनी का अंदेशा हर किसी को
मानवता की तो नींव हिल गई ।

बेशुमार दौलत की उपलब्धियां
पर सेहत उनकी लील गई ।

सबके सब सपनों के सौदागर
सच्चाई अंदर ही अंदर घुट गई ।

बतियाना तो दूर, वो रुकते भी नहीं
कैसे बताऊं उनकी गाड़ी तो छूट गई ।

----- Ashok Madrecha





Feb 11, 2018

दोस्त को पुकार (calling the friend)




सपनों का पीछा करता मनुज
गंतव्य को भूल बैठा

जब मंजिलें ना मिली
तो जहां रुका उसे ही मंजिल मान बैठा

जब कुछ खास हासिल ना हुआ तो
कुछ अखबारों की सुर्खियों में आकर
जीवन को धन्य मान बैठा...।

खैर जो हुआ सो हुआ
पर इसको आदत सी बना ली

अब तो नित्य ही कृत्रिम जिंदगी जी रहा
घूंट जहर के चुपचाप पी रहा

वो बतियाने को दोस्त भी ना साथ रहे
कुछ कहे तो भला किसको कहे....।

इतना आगे आ गए
कितने पीछे छूट गए

नदियों में पानी बहुत बहा
किनारों ने कितना सहा

चले थे कहां , मुकाम कुछ और मिले
भूलकर सब शिकवे और गिले
आ मेरे दोस्त हम फिर मिले
आ मेरे दोस्त हम फिर मिले....।

Nov 23, 2017

कविता (Hindi Poem)



मुझे चुनोतियाँ तो हर रोज मिलती है
मेरी कविता, सिर्फ सत्य जो कहती है।

ये कभी श्रंगार तो कभी वीर रस कहती है
निर्भय हो सत्ता के गलियारों से भी गुजरती है।

इस पर हर तूफान भी गुजर जाता
आकाश भी सीमित नही कर पाता।

रोकने की हर कोशिश इसे बृहत्तर कर देती
सूखते शब्दों के झरनों को फिर भर देती।

ये कविताएँ भूगोल नही मानती
स्वछंद ये, खुद के अस्तित्व को नही जानती।

बरबस इनका बनते जाना
शब्दों का चितवन में आना जाना।

ये तो बस शुरू होती है
नही कभी ये अंतिम होती है।

कितनों ने समझा इसे और आनंद लिया
बेशक कुछ बिरलों ने जी भर के इसे जिया।

बस इसे एक प्रेम ही नियंत्रित करता है
अंतर्मुखी बनाकर अभिमंत्रित करता है।

जब प्रेम से अध्यात्म की ओर अग्रसर होती है
कालजयी बन अक्सर वो कविता अमर होती है। 

Oct 22, 2017

Near to Truth सत्य के करीब



A Hindi Poem on a situation of an experienced person guiding his kin about truth of life ...




                                                     मेरी लघुता को मजबूरी मत समझो
                                                   आप जीतते रहो, उसकी व्यवस्था है ये।

                                                  हम तो उस दिन जीतेंगे जब लोग कहेंगे
                                                     आप जीत गए हो अपने प्रयत्नों से।

                                                      रास्तों के कंकरों से दोस्ती है मेरी
                                                      ताकि वो कभी चुभे नही आपको।

                                                      गति तेज है, जरा सम्भलकर चलना
                                                      अभी तो दूर तक जाना है आपको।

                                                      मेरी कलम पर एतराज मत करो
                                                    इतिहास लिखना तो बाकी है अभी।

                                                   शंका के बादलों में छुप के मत रहो
                                                    जो कहना है, दिल खोल कर कहो।

                                              फैसला तो होठों तक आ चुका हाकिम के
                                           मजबूर वो आज तक, गवाहों के इंतजार में है।

                                              हम चलते है जमीन पे आपका ख्याल कर
                                               वरना उड़ना तो हमें भी खूब आता है।

                                               विश्वास की बुनियाद पर घर बनते है
                                             अन्यथा महलों को भी कौन पूछता है।

                                        मेरे आंगन के फूलों में कोई फूल ऐसा महके
                                       लोग बुलाए उस फूल को, विश्व धरोहर कहके।

                                             विचार लो और कर्तत्व को महत्व दो
                                            अविचल बनो ओर सत्य को सत्व दो।

                                      ऊंच नीच के फेर में आज भी यथार्थ का स्थान है
                               झूठ कितना भी पाल लो, सत्य ही महान है, सत्य ही महान है।

Oct 15, 2017

Hindi Poem on Journey पथिक



जिंदगी का अर्थ खोजने
मै राहों का पथिक बनकर चल पड़ा
उलझन है अब तक क्यों रहा खड़ा।

उजागर हो रहे नित्य नए अनुभव
कहीं नदियाँ, कहीं झरनों का कलरव।

वक़्त भी इम्तहां ले रहा
नित नई चुनोतियाँ दे रहा।

कई नए चेहरे सामने आते
कुछ उदास, कुछ मुस्काते।

हर मोड़ का मौसम अलग हो जाता
कुछ भाता, कुछ नही सुहाता।

सालता कभी अकेलापन
कभी स्वजनों का अपनापन।

कभी शांत, कभी मुखर
कभी इधर तो कभी उधर।

कुछ भी घटित होता, हर पल अनूठा
मुखोटों की दुनिया मे कुछ सच्चा कुछ झूठा।

हे चुनोतियों ! में चुनोती देता हूँ
इन पंक्तियों के शब्दों से कहता हूं।

प्रेरित हूँ परिंदों की उड़ान से
नही रुकूँगा, मैं थकान से।

मंजिलें दूर सही, यात्रा तो जारी है
रोको मत मुझे, दूर तक चलने की तैयारी है।

Mar 23, 2017

नियति (Destiny)



पल पल में बहुत कुछ घटित होता
कुछ मन का, कुछ अनचाहे होता
कुछ बदल देता, कुछ बदल जाता
कभी अच्छा, कभी बुरा लग जाता ।

स्वीकृति मन से करो या कहो मज़बूरी
यहाँ हर इच्छा किसकी होती पूरी
मालुम है काम सबके है बड़े जरुरी
पूरी करते जाओ, इच्छाएं रहती अधूरी ।

घूमते नक्षत्र और सितारें भी निरंतर
घूमते परिंदे और इंसान भी इधर उधर
आता नहीं कही पर कुछ भी अंतर
थका जाता मनुज, बहुत कुछ कर कर ।

जान लो कि नियति क्या कहती है
कभी सोचा ? ये जमीं कितना सहती है
रुकना स्वभाव नहीं, नदियाँ तो बहती है
कुछ भी खाली होता, वहाँ हवाएँ तो रहती है ।

काल को कौन परिभाषित कर पाया
कुछ लिखा वो भी लगता है माया
समय से बंधा हुआ यौवन और काया
ना लोग रहे ना उनका कोई साया ।

सब्र करो आज भी आँखों में आंसू आते है
पीड़ा भी होती, वो उम्मीद भी जगाते है
कुछ लोग है जो खूब रंग जमाते है
नियति भी बदल दे ऐसा खेल रचाते है ।

Sep 26, 2016

कटाक्ष


 कटाक्ष

शराफ़त के ज़माने अब कहाँ
यूँ अकेले मत पड़ो यहाँ वहाँ।

समूहों के झुण्ड आस पास है
कोई साधारण, कोई खास है।

हर कोई खींचने की फ़िराक में
मना करो तो आ जाते आँख में।

जंगल छोड़ भेड़िये शहरों में आने लगे
सुन्दर लिबासों में शरीफों को लुभाने लगे।

ख्वाब बेचने का व्यापार चल पड़ा
लालच में हर कोई मचल पड़ा।

समूहों में हर चीज जायज हो जाती
विचारधाराएं ख़ारिज हो जाती।

नये दौर के तर्क नए , सत्य स्वयं भटक गया
इंसान इंसानियत छोड़, समूहों में अटक गया।

ईमान कम बचा , नियति तो बहुत स्पष्ट है
शिकायत किससे करे जब पूरा तन्त्र ही भ्रष्ट है।

...... अशोक मादरेचा 

Sep 13, 2016

पंख लगे मन को (Heart With Wings)


शब्दो में समेटना मुश्किल है मन को
बेलगाम होकर छीन लेता ये अमन को।
ये खुश तो दुनिया हरी भरी हो जाती है
ये रूठा तो सब योजनाएं धरी रह जाती है।
समय से परे, पल पल में रंग बदलता है
अनिश्चय में तो ये नटखट खूब मचलता है।
हवा की छोड़ो, आवाज से तेज दौड़ता
समझना मुश्किल, ये निशान भी नहीं छोड़ता।

गति पे सवार, कल्पनाओं के साथ रहने का आदी
कौन छीन सकता है भला मन की आजादी।
देश काल को ये कहाँ मानता
मर्यादित होना नहीं जानता।
मन का वेग प्रबल होता है
सतत जागरण, ये कहाँ सोता है।

अपना पराया ऊँच नीच , मन के लिए विचार है
अपरिमित ऊर्जावान , मन तो अनाकार है।
वो भावों में बसता, भावों में जीता है
भरा हुआ कभी, कभी वो रीता है।
कभी संयत, कभी उन्मुक्त सा हो जाता
बिखर जाता ये कभी सयुंक्त सा हो जाता।
त्वरित बदलावों के नेतृत्व को हर वक़्त तत्पर
ये मत पूछना, चलेगा ये कौनसे पथ पर।
अवसादों से ग्रसित होता जब ये सिमट जाता
उत्साह में आनंदित होकर खुशियों से लिपट जाता।
यात्रा का शौक इसे पल में अंतरिक्ष को नाप लेता
हर परिवर्तन को ये पहले से भांप लेता।
गतिशील मन रुकता नहीं, इसे तो समझना पड़ता है
ना समझों तो आजीवन झगड़ना पड़ता है।
मन को जो मना लिया हर राह आसान बन जाती
वर्ना कितनों की तो जान पे बन आती।
समतल मैदानों में कभी कंदराओं में जाकर आता
नदियों में कभी सागरों की लहरों से बातें कर आता।
कभी अर्थपूर्ण ये कभी निरर्थक घूम लेता
बखूबी आसमान के इंद्रधनुषी रंगों को चूम लेता।                      
कहने को ये तन इसका घर होता है
पर ताजिंदगी ये तो बेघर होता है।
कभी ये हल्का, कभी बोझिल हो जाता
कभी हँसाता, कभी खुद ही रो जाता।
कलुषित होता कभी ये निर्मल हो जाता
पहाड़ों से प्रबल कभी ये निर्बल हो जाता।
सक्रिय होता कभी ये निष्क्रिय हो जाता
कभी नीरस तो कभी प्रिय हो जाता।
ऊपर नीचे, कभी बीच में लटक जाता
किसी पे फ़िदा हो गया तो अटक जाता।
दयावान कभी ये निष्ठुर हो जाता
कभी ह्र्दय में तो कभी दूर हो जाता।
मन माने तो रिश्ते गहरे हो जाते
मन रूठे तो अपने भी दूर हो जाते।
अबाधित मन को जिसने जान लिया
वो सिद्ध बने साक्षात् जग ने भी ये मान लिया।

Jul 4, 2016

टूटे पत्ते का दर्द (Pain of Broken Leaf)










वो कल कोपलों के बीच सबका प्यारा था
हरित चमक लिए, अनूठा वो सबसे न्यारा था।
ओस की बुँदे भी आकर उसपे ठहरती थी
हर चिड़िया उसका स्पर्श पाने को रूकती थी।
वो हरा भरा, उस पेड़ की डाल का गौरव था
उसकी दुनियाँ आबाद थी, सारा वैभव था।


समय की यात्रा में
वो रंग खोने लगा
हरा था , बाद में पीला पीला होने लगा।
एक दिन वो सूख गया और रोने लगा
जगा हुआ उसका संसार सोने लगा।
किसी ने नहीं सुनी उसकी, हवा का झोंका आया
छिटक गया वो डाल से, बोलो कुछ समझ में आया।
हर कोई दोहराता ये, बस वक़्त अलग होता है
फिर भी इंसान में गरूर कितना होता है।
आपाधापी में जिंदगी खूब मचलती, तड़पती
चेहरों पे नकाब डालने से उम्र नहीं बदलती।
कुछ अच्छा कर लेने की ठान लो
मनाओ मन को या खुद ही मान लो।

Apr 30, 2016

उम्मीदों का जहां


सन्नाटों में खुद के सायों से बाते करते हो
कहते कि अकेले नही, पर आहें भरते हो।
अरसा हो गया हमसे बात करके
अब ये मत कहना कि रोये नहीं जी भर के।
खुद को सजा देने की आदत तो पुरानी है
इश्क और इम्तहाँ की लंबी जो कहानी है।
कुछ बाँट लेते दर्द, ह्रदय तो हल्का हो जाता
गैर सही हम, अश्कों को अवकाश मिल जाता।
हर जगह सबको क़द्रदान कहाँ मिलते है
समय और संयोग से ही सुंदर फूल खिलते हैे।
पोंछ दो आँसू, उम्मीदों पर संसार चलता है
स्वीकार करो, आशाओं में प्यार पलता है।
कितनी देर हुई ये गिनती भी जरुरी नहीं
खुद को रोकना कोई मजबूरी नहीं।
कौनसे वक्त का इंतजार कर रहे हो
या किसी अनहोनी से डर रहे हो।
विश्वास करो, थाम लो मन की पतवार को
करीब है मंजिल, दस्तक तो दो द्वार को।

Aug 14, 2015

प्रयास ( Effort )



प्रयास की दिशा सही हो
भाव अपने वही हो।
निरंतर बस लगे रहो
कर्म सलीके से करते रहो।
लगन से हर मुकाम मिलता है
वक्त पे ही सुन्दर फूल खिलता है।
धैर्य की परीक्षा तो होगी
काम की समीक्षा भी होगी।
अपनी आशा और जोश साथ रखे
विश्वास रखे और खुद को भी परखे।
हर ऊँच नीच को अपना लेना
आत्म विश्वास को परम मित्र बना लेना।
भीड़ की सोच में उलझ मत जाना
तुम खास हो अपनी मंजिल खुद पाना।
बिल्कुल मत घबराना
प्रयासों के घनत्व को बढ़ाना।
दुनियाँ भी आसपास घूमेगी
सफलता तुंम्हारे कदम चूमेगी।
.......अशोक मादरेचा

Jul 27, 2015

तड़पन



बरसों से बिखरा हुआ हूँ, अब तो मुझे सवाँर दो
बहुत तन्हा हूँ, थोड़ा ही सही पर कुछ तो प्यार दो।

वफ़ा के आइनों में पाक चेहरे कहाँ से लाऊँ में
बंद है दरवाजे सब बताओ कहाँ तक जाऊं मै।

वक़्त बदलता रहा , शहर के बाजारों की तरह
हमने शहर बदले आपकी तलाश में बंजारों की तरह।

उम्मीदों की रौशनी में हर पल याद आते हो
मेरे अपने हो फिर भी इतना जुल्म ढाते हो।

झील सी आँखे चेहरे पे गजब का नूर था
सिर्फ नज़रों से बाते की, मेरा क्या कसूर था।

इश्क के उसूल नहीं मालूम, आपका आना जरुरी है
बिलकुल मत कहना इस बार, फिर कोई मज़बूरी है।

May 28, 2015

आत्मविश्वास (Self Confidence)



अंतर से उठ रही अविराम तड़पती आवाज
ओ प्रिय तन्हाई पास आओ आज  .…।
तमन्नायें दबती रही, निराशाएं घर करती रही।
झूठे दिलासों के बीच, अमर आशाएं मरती रही .…।
घने कोहरों के बीच, जंगलो में टहलता रहा
कृतत्व और पुरुषार्थ, करने को मचलता रहा .…।
अब सन्नाटों में समय से, कुछ प्रश्न करने की अभिलाषा है
उत्तर मिले या ना मिले, बरसो पुरानी जिज्ञासा है .…।
कहूँगा समय को ,सत्य साथ लेकर आना
ना चलेगा कोई बहाना, मुझे तो बस उत्तर पाना .…।
उलझनों से निकलने की ठान ली है
वक़्त की नब्ज जो पहचान ली है .…।
अब अवरोध सभी हट जायेंगे
गम के बादल छट जायेंगे .…।
विसंगतियों को चुनोती देता हूँ
पूर्ण विश्वास से संकल्प लेता हूँ .…।
समता को अपनाकर,अंतरिक्ष से आगे तक इरादा है
आत्मबिश्वास के आगे ये लक्ष्य कौनसा ज्यादा है .…।
अब तूफ़ान मुझे रोक नहीं पाएंगे
राहों में कोई टोक नहीं पाएंगे .…।
रुक गए यो बहुत खलेगा
घबराने से काम नहीं चलेगा .…।
सब दिशाओं को निर्देशित कर दूंगा
मुरझाए दिलों में नयी उर्झा भर दूंगा .…।
पल प्रति पल प्रयत्न करूँगा
मै विजय श्री का वरण करूँगा .…।
मै विजय श्री का वरण करूँगा .…।

…अशोक मादरेचा

Apr 26, 2015

आशा (Hopes)



समर्पण  के सेतु से परमात्म तक की यात्रा
आत्मा के हेतु से बंधे हुए हर असहज को
सहज कर देने की ऊर्जा और दिशाओं को
सीमित कर दे ऐसी कृपा की मात्रा। 
हर पल के अस्तित्व को नव आयाम देती हुई
स्वयं को पहचानने की लालसा का अनुभव
होना तो शुरुआत है पर यही मंजिलो तक का
सफर करा देती है विश्राम भी देती हुई।
इरादों का बुलंद होना, और सतत परिश्रम का पालन
कुछ दूर नहीं होता फिर, मनुष्य के लिए
क्या करना है, क्यों करना है, कब करना है
इस उलझन से निकले तो, सफलता करेगी गुंजन।
पुरुषार्थ और आडम्बर का फर्क स्पष्ट रहे हरदम
व्यर्थ में जाया ना करे समय और साधनों को
प्रमाद से दूर रहकर, आनंद के भावों में विचरे बस
इतनी सी बातें है, फिर क्यों कष्ट सहे हम।

-- अशोक मादरेचा

Feb 27, 2015

समाज की सच्चाई


जाने अनजाने हम क्यूँ अमरता का आभास करते है
खूब करते दिखावा और कितनों का परिहास करते है।
हर बात में अपने अहम् का पालन अब सहज हो चला
कुछ करने की जल्दी में रिश्तों की चिंता क्यूँ हो भला।
अर्थ के बुखार में समय सीमित लगने लगा है
क्या बुढ़ापा क्या जवानी, बचपन भी रोने लगा है।
हर मनुज दोहरी जिंदगी जीने को मजबूर हुआ
भाग रहा इधर उधर स्वयं से कितना दूर हुआ।
अपनों के बीच बैठ बतियाना अब कहा दिखता है
हर चीज के होते मोलभाव , रोज जमीर बिकता है।
बटोरतें सुर्खियां अख़बारों में विज्ञापनों का दौर चल रहा है
सिर्फ पदों का बंटवारा , देखो कैसे समाज बदल रहा है।
हुए कब्जे पानी और जमीनों पे हवाएं अब मुश्किलो में है
धर्म राजनीति का शिकार है न मालूम और क्या दिलो में हे।
ओरो की छोड़ो परिवारों में राजनीति हावी होने लगी
उलझनों के दावपेच में करुणा मैत्री तो खोने लगी।
जरूरतों के पहाड़ के नीचे दबा इंसान कितना अकेला है
साफ है मकान उसका पर अंदर से कितना मैला है।
अहसास तो होता है पर स्वीकार नहीं करते
नियति कहके उसको सब तिल तिल मरते।
हर ख़ुशी कल पर टाल कर वर्तमान की बलि चढ़ा दी
जो मिला उसमे सबर नहीं, नहीं मिला वहाँ नजर घड़ा दी।
सरलता छोड़कर उलझनों को अपनाया
खुद के बजाय ओरों को सुधारने में वक़्त गवांया।
नेता की पदवी मिली समाज में तो मन बहुत इठलाया
हर वक़्त जुगाड़ में रहे कि कौन क्या लाया।
शिकायत है इनको आजकल नींद नहीं आती
मन अशांत है खुशियां करीब नहीं आती।
एक भी ऐसी रात नहीं ये कोई अचरज की बात नहीं
वो भीड़ में अलग दीखते होंगे पर कोई उनके साथ नहीं।
मै सच कहता हूँ इस महफ़िल में
बुरा मत लगाना कोई भी दिल में।
यहाँ जीवन तमाशा बन गया और सब चुपचाप है
अब ऐसा मत कहना कि यहाँ बोलना भी पाप है।
वक़्त रहते हम्ही को बदलाव लाने होंगे
टूटते परिवार और रिश्तों को बचाने होंगे।
गौरवशाली है संस्कार हमारे भावी पीढ़ी को ये समझने दो
अवसर दो अशोक अब उनको आगे बढ़ने दो।

प्रयास (Efforts)

जब सब कुछ रुका हुआ हो तुम पहल करना निसंकोच, प्रयास करके खुद को सफल करना। ये मोड़ जिंदगी में तुम्हें स्थापित करेंगे और, संभव है कि तुम देव तु...